चंडीगढ़ – दिल्ली के बीच यानि हाई- वे 44 पर गुजरते समय पीपली से बायीं तरफ मुड़ने के बाद करीब दस किलोमीटर तक सड़क किनारे खेत खलियान और इक्का दुक्का फैक्ट्री या गोदाम जैसी जगह देखने से लगता है कि आप एक साधारण से ग्रामीण इलाके से गुज़र रहे हैं. सहारनपुर की तरफ जाते इस राजमार्ग के थोड़ी शहरी आबादी का अहसास कराते हिस्से में प्रवेश करते ही दिखाई देने वाली एक छोटी सी बिल्डिंग अचानक एक झटका सा देती है. भारत के किसी शहर में आधुनिक छोटे मोटे मॉल या शॉपिंग काम्प्लेक्स की सी फीलिंग देती ये जगह इतनी जिज्ञासा तो पैदा कर ही देती है कि आप एक बार भीतर ज़रूर जाएँ. बड़ी बड़ी कांच की खिड़कियों (Glass Window) और उसी तरह के दरवाज़े वाली रंग बिरंगी दीवार पर पूरे स्टाइल में बड़ा बड़ा लिखा आई लव लाडवा (I Love Ladwa) भी बरबस ही ध्यान खींच लेता है जिसमें ‘ लव ‘ के प्रतीक के तौर पर दिल की आकृति है.यही इस जगह के नाम और वजूद से भी रूबरू करवा देता है.
ये है लाडवा…. ! कुछ महत्वपूर्ण होने के बावजूद भारत के हरियाणा राज्य के नक्शे में खो सा गया एक नगर. यहीं पर बस स्टैंड के सामने ये बिल्डिंग है जिस पर बड़ा बड़ा लिखा है ओटीसी फूडकोर्ट (OTC Foodcourt) औत होटल पैराडाइस (Hotel Paradise ). कुछ चीज़ों के बारे में पक्के तौर पर यकीन तब तक नहीं होता जब तक हम खुद देख ,सुन और समझ कर परख न लें या फिर जब तक भरपूर तरीके से महसूस न कर लें. कुछ कुछ ऐसे ही ख्यालों के साथ यहाँ भी अपना भीतर जाना हुआ.
किस्म किस्म के लोकप्रिय भारतीय व्यंजनों के साथ साथ अलग अलग तरह के सैंडविच , बर्गर और इटेलियन पिज़्ज़ा पास्ता से लेकर तमाम तरह के और भी विदेशी खाने ऐसी जगह पर मिल सकते हैं इसका जल्दी से यकीन नहीं होता. यही नहीं, साथ ही ये दावा भी कि खाने में स्वाद में कोई कमी नहीं होगी. किस्म किस्म के लोकप्रिय भारतीय व्यंजनों के साथ साथ अलग अलग तरह के सैंडविच, बर्गर और इटेलियन पिज़्ज़ा पास्ता से लेकर तमाम तरह के और भी विदेशी खाने ऐसी जगह पर मिल सकते हैं इसका जल्दी से यकीन नहीं होता. अच्छा बड़ा मैन्यू (Menu). मैन्यू से नज़र हटी तो सामने एक कोने में माकटेल और शेक्स कॉर्नर (Mocktail and Shakes corner) साथ ही एक ऑप्शन हेल्दी फ़ूड (Healthy Food ) का भी दिखाई दे रहा था. यानि आप कुछ न कुछ तो ऑर्डर किये बिना रह ही नहीं सकते चाहे आपको भूख हो या न हो.
खैर शुरुआत की सूप और सैंडविच के साथ तो समझ आ गया कि खाने के स्वाद में कोई कमी न होने का दावा यहाँ गलत नहीं है. स्नैक्स से शुरुआत अच्छी रही. मेन कोर्स भी लज़ीज़ था. वहीं सर्विस की रफ्तार भी ठीक ठाक थी. हां थोड़ी ट्रेनिंग और हो तो सर्विस परफेक्ट हो जाएगी. ओटीसी फ़ूड कोर्ट में फर्नीचर साधारण ज़रूर है लेकिन विकल्प के साथ उपलब्ध है – कुर्सी लो या चाहो तो सोफा. आरामदायक दोनों ही हैं . ग्राउंड फ्लोर पर ही रेस्तरां है और भीतर से बैठे बैठे खाते पीते बाहर का नज़ारा दिखाई देता रहता है. ये माहौल के खुलेपन का भी अहसास कराता है. दोस्तों का ग्रुप हो या फैमिली के साथ आना हो , हर हिसाब से जगह फिट है. दो तरफ से एंट्री और एग्जिट के साथ वाहन खड़ा करने की काफी जगह भी है. कुल मिलाकर एक लम्बे सफर के बीच यहां फ्रेश होने और थकान मिटाने के साथ सुंदर भी भी स्वाद भरी पेट पूजा का एक अच्छा मौका भी मिला. वेजिटेरियन भी और नॉन वेजिटेरियन भी यहां उसी शिद्दत से बनाये और परोसे जाते हैं.
थोड़ा आराम मिला तो इस दिलचस्प सी लगने वाली जगह को और जानने की इच्छा हुई. बातचीत के दौरान , यहां के ओटीसी के मालिक आयुष गुप्ता ने यहां की दूसरी मंज़िल पर जाकर देखने का आग्रह किया. …और ये भी बढ़िया रहा. दरअसल, खुलेपन के शौक़ीनों के लिए ये ओटीसी फ़ूडकोर्ट का टैरेस है. बेशक छोटा है लेकिन 10 -15 दोस्तों या दो तीन परिवारों के लिए पर्याप्त है. यहाँ कुदरत से मेल खाती साज सज्जा है. रेट्रो लुक वाला फर्नीचर यहाँ का आकर्षण है. युवा वर्ग के लिए खासतौर पर ये मज़ेदार है. खुले आसमान के भरपूर नज़ारे के साथ साथ यहाँ रेस्तरां के बैक साइड में हरियाली से भरपूर खूबसूरत ओपी जिंदल पार्क के पेड़ पौधों का आनन्द लिया जा सकता है. सेल्फी और फोटोग्राफी के शौकीनों के लिए भी ओटीसी फूड कोर्ट का टेरेस बेहतरीन स्पॉट है. सर्दी में धूप सकते हुए खाओ पियो या शाम के चाँद तारों की कुदरती रोशनी का आनंद लो.
आयुष के साथ ओटीसी फूड कोर्ट को इस स्टाइल से डिजाइन और विकसित में उनके साझीदार मित्र डॉ अमन पंजेठा का अहम रोल है. दोनों अलग अलग पेशे से हैं. मीडिया से जुड़े रहे आयुष जहां फ्लैक्स प्रिंटिंग और प्रचार जैसे कारोबार में है तो डॉ पंजेठा शिक्षाविद हैं. बड़े मिलनसार लाडवा के रहने वाले ये दोनों शख्श कला के पारखी और खाने पीने का शौक तो रखते ही है कुछ नया करने की भी हर वक्त कोशिश करते हैं. ओटीसी फूड कोर्ट का बनना भी उनकी इसी सोच का नतीजा है जो इसी साल (जुलाई 20 21 ) में शुरू किया गया. साथ ही होम डिलीवरी भी की जाती है. आयुष गुप्ता बताते हैं कि ये लाडवा का पहला फूड कोर्ट है और यहां सबसे ज्यादा वैरायटी तो मिलती है है होस्पिटेलिटी (hospitality) के दूसरे आयाम भी हैं.
लाडवा के ओटीसी फूडकोर्ट के बेसमेंट में बना छोटा सा पार्टी हाल इस जगह के मालिकों की उस सोच का हिस्सा है जो अपने यहां के लोगों को वो तमाम सहूलियत देना चाहते हैं जिसके लिए उन्हें दूर जाना पड़ता है. ये एयर कंडीशंड पार्टी हाल (air conditioned party hall ) छोटे मोटे पारिवारिक कार्यक्रमों के लिए ठीक है लेकिन यहां सबसे ज्यादा बच्चों के बर्थडे सेलिब्रेट होते हैं. असल में इसको डिज़ायन भी इसी तरह किया गया है कि ये बर्थडे सेलिब्रेशन (birthday celebration) की ज़रूरतों को पूरा कर सके. एक कोने में गीत संगीत का बन्दोबस्त तो छोटा सा डांस फ्लोर भी है. आयुष कहते हैं कि पार्टी हाल की इतने डिमांड हो जाती है कि कभी कभी तो एक दिन में दो बर्थडे भी यहां मनाये जाते हैं.
मजे की बात है कि ओटीसी फूडकोर्ट ने अपने नयेपन या अलग स्टाइल से चीज़ों को करने के अपने सिलसिले को लगातार बढ़ाते हुये एक और शुरुआत कर दी. ये है वीकेंड म्यूजिकल इवनिंग (weekend musical evening ) यानि खाना भी और गाना भी. बड़ी बड़ी जगहों पर अमल में लाये जाने वाले इस कॉन्सेप्ट के साथ यहां बैंड की लाइव परफोर्मेंस के बीच डिनर का मज़ा लिया जा सकता है. पहली बार में किया गया ये प्रयोग सफल रहने से आयुष और डॉ पंजेठा का उत्साह बढ़ा है. वे बताते हैं कि जगह और सीटें सीमित होने के कारण उन्होंने म्यूजिकल इवनिंग डिनर के लिए 50 मेहमान ही आमंत्रित किये थे लेकिन डिमांड ज्यादा की हो गई थी. बावजूद इसके वे बस 2 और मेहमानों को ही एडजस्ट कर सकते थे. एक बात तो बताई ही नहीं – ओटीसी (otc ) का मतलब. असल में इसकी फुल फॉर्म (full form ) है ओल्ड टाइम कैफे (old time cafe ). आयुष बताते हैं कि पहले इसी नाम से उन्होंने एक कैफे की शुरुआत की थी लेकिन ग्राहकों की बढ़ती संख्या और वैरायटी की मांग को पूरा करने के लिए उन्हें ज्यादा बेहतर और बड़ी जगह की ज़रुरत थी लिहाज़ा उन्होंने यहां उसी नाम से फूडकोर्ट बनाया
लाडवा :
तकरीबन 60 हज़ार की आबादी वाला लाडवा हरियाणा का एक ऐसा कस्बा है जो शहरीकरण की रफ्तार पकड़ रहा है. कृषि आधारित अर्थव्यवस्था वाला लाडवा अपनी अनाज मंडी के लिए लोकप्रिय है. अलग अलग वर्गों और मजहबों को मानने वाले लोगों की यहां आबादी है. हाल के वर्षों में यहां अगर कुछ चर्चा योग्य हुआ तो वो रहा यहां खूबसूरत ओपी जिंदल पार्क का निर्माण और उसमें स्थापित 200 फुट से भी ज्यादा उंचाई पर भारत के राष्ट्र ध्वज तिरंगे का फहरना. यहां हरियाणा का सबसे ऊंचे ध्वज स्तम्भ है लेकिन काफी समय से ध्वज गायब है. एक ज़माने में सिख राजा गुरदित सिंह और उसके बाद उनके बेटे राजा अजीत सिंह की रियासत रही लाडवा का योद्धा पैदा करने का इतिहास भी रहा. अमृतसर के पास के एक गांव के रहने वाले राजा गुरदित सिंह का ज़िक्र विदेशी इतिहासकारों ने सराहना करते हुए किया है.
राजा गुरदित सिंह :
राजा गुरदित सिंह की वीरता का इतिहास सर लेपल हेनरी ग्रिफ्फिन की किताब ‘ द पंजाब चीफ्स ‘ ( the punjab chiefs ) में मिलता है और इसके मुताबिक़ एक योद्धा के तौर पर राजा गुरदित सिंह के करियर की शुरुआत 1758 में हुई थी जब वे मीत सिंह रोहेला की फ़ोर्स में शामिल हुए थे. राजा गुरदित सिंह ने काबुल से आये हमलावर शाह ज़मन दुर्रानी का 1798 में जींद में मुकाबला किया था. राजा गुरदित सिंह ने सितंबर 1803 में दिल्ली को बचाने के लिए मराठा सरदार सिंधिया की सेना का साथ देते हुए अंग्रेज़ जनरल लेक का मुकबला भी किया था. राजा गुरदित सिंह की रियासत में लाडवा के 94 गांव के बद्दोवाल , जगरांव , पद्दी , शेखपुरा , सिंघोर के कई गांव तो थे ही इंद्री नगर और सिकंदरा के गांव भी थे. राजा गुरदित सिंह की सेना में 1500 से ज्यादा घुड़सवार (cavalry ) , 400 इन्फेंटरी जवान , 6 छोटी और 2 बड़ी तोपें भी थीं. यही नहीं महाराजा रणजीत सिंह के समय में स्थापित सिख साम्राज्य के सतलज के इस पार के क्षेत्र के वो अकेले ऐसे राजा थे जिन्होंने अंग्रेज़ हुकूमत के आगे घुटने नहीं टेके थे. आखिरी सांस तक उन्होंने अंग्रेजों की नाक में दम किये रखा और लाडवा को उनके चंगुल में जाने से बचाए रखा. उनके पास तीन किले थे – लाडवा , इंद्री और करनाल. अंग्रेजों ने 1805 -06 करनाल को अपने कब्ज़े में ले लिया था लेकिन राजा गुरदित से यहाँ मुकाबला करने के लिए उनको भरपूर सैन्य ताकत लगानी पड़ी थी.
राजा अजीत सिंह :
राजा गुरदित सिंह की वीरता और परम्परा का उनके पुत्र राजा अजीत सिंह (Raja Ajit Singh ) ने भी पालन किया. पिता से विरासत में मिली वीरता और शासन को मज़बूत किया. अंग्रेजों की तरफ से बढ़ते खतरे को भांपते हुए राजा अजीत सिंह ने लाडवा किले को मज़बूत किया. उन्होंने अंग्रेज़ हुकूमत और उसकी सेना से लड़े गए 1845 पहले ब्रिटिश -सिख युद्ध में हिस्सा लिया. हालांकि ये युद्ध वे हार गये थे और उनका राजपाट ज़ब्त कर लिया गया था. उनको बंदी बनाकर इलाहाबाद के किले में कैदी की तरह रखा गया था लेकिन वहां पर पहरेदारों की हत्या करके राजा अजीत सिंह ने खुद को आज़ाद कर लिया था. इसके बाद के उनके इतिहास की पुख्ता जानकारी नहीं है. माना जाता है कि लाडवा के राजा अजीत सिंह इसके बाद कश्मीर के पर्वतीय क्षेत्रों में चले गए थे.
बाला सुंदरी मन्दिर :
हालांकि लाडवा में अब उस इतिहास की स्मृतियों को संजोकर नहीं रखा गया. राजा अजीत सिंह का बनाया लाडवा का किला मटियामेट हो चुका है. वहां बाज़ार की दुकानें बना दी गईं. हां उनके द्वारा स्थापित किया गया बाला सुन्दरी देवी मन्दिर ( Bala Sundari Temple) यहां ज़रूर है. कहा जाता है कि रियासत में अराजकता के दौर में राजा को मां बाला सुन्दरी ने कन्या के रूप में दर्शन दिए और हिमाचल प्रदेश के त्रिलोक पुर स्थित मन्दिर से पिंडी लाकर यहां स्थापित करने को कहा. राजा अजीत सिंह त्रिलोकपुर से पैदल यात्रा करके पिंडी सर पर उठाकर लाये और इस मन्दिर का जीर्णोद्धार किया. नवरात्रों में लाडवा के बाला सुन्दरी मन्दिर में बड़ा मेला लगता है. यहां मां बाला सुन्दरी की विशाल प्रतिमा भी स्थापित है. सिखों की आबादी और गुरुद्वारों की मौजूदगी यहां अच्छे से दिखाई देती है. कुछ मुस्लिम आबादी और पीर की दरगाह और मस्जिद भी दिखती हैं.