चंडीगढ़ का बर्ड पार्क : काले और सफेद हंसों के जोड़े भी हैं यहां

चंडीगढ़ का बर्ड पार्क : काले और सफेद हंसों के जोड़े भी हैं यहां

चंडीगढ़ में घूमने और देखने लायक जगह में अब एक और आकर्षण जुड़ गया है. चंडीगढ़ के पूर्वी छोर पर सुखना लेक के पास ही ये खूबसूरत बर्ड पार्क है जो नवंबर 2021 में बनकर तैयार हुआ. चंडीगढ़ के बर्ड पार्क की खासियत ये है कि यहां पक्षी को ऐसे वातावरण में रखने के तरीके अपनाए गए हैं जिससे पक्षियों को लगे मानो वे प्राकृतिक वातावरण में हों. ज़्यादातर पक्षियों को खुला छोड़ा गया है और जो पिंजरे में हैं भी, उनको भी वहां उड़ने और तमाम गतिविधियां करने के लिए पर्याप्त खुली जगह उपलब्ध है. चंडीगढ़ के इस बर्ड पार्क में पक्षी प्रजनन (breeding) भी कर सकते हैं.

चंडीगढ़ का बर्ड पार्क

चंडीगढ़ का बर्ड पार्क

रंग बिरंगे, छोटे-बड़े आकार के इन पक्षियों में वे भी हैं जो ज्यादा समय पानी में बिताना पसंद करते है. पक्षियों के लिए लकड़ी के खूबसूरत बर्ड हाउस और घोसले भी बनाये गये है. यूं तो यहां सैकड़ों किस्म के पेड़ पौधे हैं जिनसे पक्षियों को खाना मिल सकता है लेकिन उनको अलग से दाना पानी भी देने की विशेष व्यवस्था है. इनमें वो पक्षी भी हैं जो पेड़ों पर निवास करते हैं तो पृथ्वी और जल में रहने वाले भी हैं.

चंडीगढ़ का बर्ड पार्क

चंडीगढ़ का बर्ड पार्क

रहने का खास इंतजाम :

चंडीगढ़ के बर्ड पार्क में पक्षियों के लिए ऊँचे और लम्बे चौड़े पंडालनुमा ढाँचे बनाये गये हैं जिनमें काफी धूप रोशनी आती है. परिंदे 58 फुट तक की ऊंचाई (तकरीबन) छह मंजिल तक उड़ान भर सकते हैं. इन ढांचों की लंबाई तकरीबन 200 फुट और चौड़ाई 150 फुट है. भारत में किसी भी बर्ड पार्क में इस तरह का ये सम्भवत: सबसे बड़ा ढांचा है.

परिंदों की किस्में :

चंडीगढ़ का बर्ड पार्क

चंडीगढ़ का बर्ड पार्क

देशी ही नहीं यहां परिंदों की विदेशी नस्लें भी हैं. चंडीगढ़ के बर्ड पार्क (chandigarh bird park ) में अफ्रीकन लव बर्ड की अलग अलग किस्में लोगों को बहुत भा रही हैं. इसी तरह जितने सुन्दर सफेद हंस (white swain) यहां पानी में तैरते मिलेंगे वैसे ही काले हंस ( black swain ) का जोड़ा भी अठखेलियाँ करता दिखाई देगा जो कभी पानी में तो कभी बाहर निकल कर दर्शकों के करीब तक आ जाता है. इसी तरह की बत्तखों की प्रजातियां भी यहां का आकर्षण हैं. छोटे बड़े विभिन्न आकार और अद्भुत रंगों वाले तोते तो बेशुमार हैं. कई परिंदे तो यहां ऐसे दिखेंगे मानो किसी ने कल्पना करके खिलौने बनाकर उनको यहां सजाया हुआ हो.

मन मोह लेने वाले नज़ारे :

चंडीगढ़ का बर्ड पार्क

चंडीगढ़ का बर्ड पार्क

पर्यटन के नज़रिये से तो चंडीगढ़ के लिए बर्ड पार्क महत्वपूर्ण है ही, पक्षी प्रेमियों और वन्य जीव प्रेमियों के लिए भी ये देखने लायक जगह है. चंडीगढ़ का बर्ड पार्क पक्षियों के प्रति युवा पीढ़ी में जागरूकता लाने और उनके बारे में जानकारी देने का भी एक अच्छा ज़रिया कहा जा सकता है. यहां आने पर पक्षियों की तरह तरह की आवाजें और मन मोह लेने वाली उनकी भाव भंगिमाएं उदास शख्स का भी मूड बदल देती है. अगर आप प्रकृति प्रेमी हैं और पक्षियों में आपकी दिलचस्पी है लेकिन आपके पास दूर दराज़ के जंगली इलाके या पक्षी विहार में जाने का वक्त नहीं है तो ये जगह आपको एक विकल्प देगी. अगर आप चंडीगढ़ में हैं तो एक बार तो यहां की बर्ड पार्क देखना बनता है. यकीन मानिये आपको बेहद मज़ा आएगा. फोटोग्राफी और वीडियोग्राफी का शौक रखने वालों के लिए भी ये पक्षीशाला एक बढ़िया जगह है.

बर्ड पार्क देखते देखते अगर थकान हो जाए तो उसका भी इलाज है. यहां के केफेटेरिया चाय, कॉफ़ी, कोल्ड ड्रिंक्स के अलावा स्नैक्स भी मिलते हैं जिनके दाम भी ज्यादा नहीं हैं. इसके साथ ही एक सोवेनियर शॉप भी है. यहां से आप पक्षियों आदि की तस्वीरों वाले टी शर्ट, कैप या सजावटी सामान भी खरीदकर एक यादगार के तौर पर ले जा सकते हैं.

चंडीगढ़ का बर्ड पार्क

चंडीगढ़ का बर्ड पार्क

बर्ड पार्क का टाइम :

चंडीगढ़ के बर्ड पार्क ( bird park timings ) में सुबह 10 बजे से शाम 5 बजे तक घूमा जा सकता है लेकिन 4 बजे के बाद इस बर्ड पार्क में प्रवेश नहीं हो सकता. सोमवार और मंगलवार के अलावा बाकी दिन ये पार्क खुला रहता है. ज़्यादा जानकारी और स्पष्टीकरण के लिए चंड़ीगढ़ प्रशासन के वन एवं वन्य जीव विभाग की वेबसाइट पर दिए गए फोन नंबर 0172 -2700284 , 2700217 पर संपर्क किया जा सकता है.

चंडीगढ़ का बर्ड पार्क

चंडीगढ़ का बर्ड पार्क

एंट्री टिकट :

चंडीगढ़ के बर्ड पार्क (bird park ) में प्रवेश के लिए आपको टिकट (entry ticket) लेना होगा. पार्क के बाहर ही ये टिकट खरीदा जा सकता. एक व्यक्ति की एंट्री के लिए 50 रुपये का टिकट है जबकि 5 से 12 साल के बच्चे के लिए ये टिकट 30 रुपये का है. उससे कम उम्र के बच्चों के लिए टिकट लेने की ज़रूरत नहीं है. विदेशी नागरिकों को चंडीगढ़ बर्ड पार्क में प्रवेश के लिए दोगुना यानि 100 रूपये का टिकट खरीदना होगा. बर्ड पार्क के टेम्ड क्षेत्र (tamed area) में जाने के लिए अलग से भारतीय नागरिकों को 100 रूपये का और विदेशी नागरिक को 500 रूपये का टिकट खरीदना पड़ेगा.

टेम्ड एरिया की खासियत ये है कि इसके भीतर जाने पर आप पक्षी के इतने नज़दीक पहुंचेंगे कि पक्षी आपके कंधे, सिर या बाज़ू पर आ बैठेगा लेकिन हां आप उसे पकड़ नहीं सकते. नज़दीक से फोटो खींच सकते हैं.

ऐसे पहुंचे बर्ड पार्क :

चंडीगढ़ का बर्ड पार्क सुखना लेक (sukhna lake) के पिछवाड़े सिटी फारेस्मेंट में है. यहां तक निजी वाहन के अलावा ऑटो रिक्शा, टैक्सी या स्थानीय परिवहन सेवा चंडीगढ़ ट्रांसपोर्ट अंडरटेकिंग (ctu) की बस से भी पंहुचा जा सकता है. क्योंकि इस बर्ड पार्क को शुरू हुए ज्यादा समय नहीं हुआ है इसलिए काफी लोगों को इसके बारे में जानकारी नहीं है. ऐसे में पता पूछते वक्त ये ज़रूर याद रखिये कि चंडीगढ़ का बर्ड पार्क सुखना झील के एकदम पास है.

रावी किनारे छोटा हरिद्वार जहां पहाड़ की गुफाओं में पांडवों के बनाए मंदिर हैं

रावी किनारे छोटा हरिद्वार जहां पहाड़ की गुफाओं में पांडवों के बनाए मंदिर हैं

भारत के पंजाब राज्य में पर्यटन के साथ ही इतिहास और आस्था के नज़रिए से ऐसी गुफाओं वाले मन्दिर हैं जिनको महाभारत काल से जोड़ा जाता है. विशाल पहाड़ों के बीच बनी इन छोटी छोटी गुफाओं में पांडव भाई उपासना करते थे और ध्यान लगाया करते थे. रावी नदी के किनारे गुफाओं वाले मंदिरों के इस स्थान को मुक्तेश्वर धाम महादेव कहा जाता है. पंजाब के पठानकोट ज़िले के पहाड़ी क्षेत्र में मनोरम दृश्य वाला मुक्तेश्वर धाम आस्था के साथ साथ रोमांच अनुभव करने का भी एक केंद्र है. माना जाता है कि ये 5500 साल पुरानी गुफाएं हैं. ये भारत के महत्वपूर्ण शिव मन्दिरों में से एक है लेकिन ज़्यादा लोगों की इसकी जानकारी नहीं है .

Mukteshwar Mahadev Temple

इस गुफा में धूनी लगातार जलती है.

पठानकोट में शाहपुर कंडी बांध मार्ग पर डूंघ गांव स्थित मुक्तेश्वर धाम महादेव की कहानी द्वापर युग में पांडवों के अज्ञातवास से जोड़ कर बताई जाती है. मुक्तेश्वर धाम के महात्म्य के बारे में बताता यहां एक बोर्ड लगाया गया है जिसमें दिए गये विवरण के मुताबिक़ अपने वनवास के 12 वें वर्ष में पांडवों ने मुख्तेश्वर महादेव धाम की स्थापना की थी. पांडव भाई प्रवास के क्रम में दसुआ ( ज़िला होशियारपुर ) से होते हुए माता चिंतपूर्णी के दर्शन करते हुए आये थे और इस वीरान जगह को रहने के लिए चुना. माना जाता है कि पांडव मुक्तेश्वर धाम में तकरीबन 6 महीने रहे थे. इस दौरान उन्होंने पांच गुफाओं का निर्माण किया. पांडवों ने यहां शिवलिंग स्थापित करते हुए भगवान् शिव को जागृत करते हुए कौरवों से होने वाले युद्ध में जीत का वरदान हासिल किया.

Mukteshwar Mahadev Temple

मुक्तेश्वर महादेव मंदिर की गुफा.

मुक्तेश्वर धाम का इतिहास बताने वाले इस बोर्ड पर अंकित है कि यहां पर एक अखंड धूना और रसोई घर भी बनाया गया जिसे आज द्रौपदी की रसोई के नाम से भी जाना जाता है.समय बीतने के साथ वो गुफा बन्द हो गई. वहीं पांडव अज्ञातवास का क्रम शुरू होने से पहले ही रावी नदी को पार करके विराट राज्य की सीमा में चले गये जिसे आजकल जम्मू कश्मीर कहा जाता है. मुक्तेश्वर महादेव के महात्म्य का वर्णन स्कंद पुराण के कुमारखंड में मिलता है. मुक्तेश्वर धाम महादेव का शिवलिंग अद्भुत सा लगत्ता है क्योंकि इसमें खड़ी और सीधी रेखाएं दिखाई देती हैं जो रक्त शिराओं सी प्रतिबिंबित होती हैं जो ओज या ऊर्जा का प्रतीक है. यहां तीन नंबर वाली गुफा में ऊपरी हिस्से में एक चक्र है. मान्यता है कि यहां बैठ कर पांडव ध्यान योग और क्रिया साधना किया करते थे.

Mukteshwar Mahadev Temple

गुफा मंदिर में जाने का रास्ता

इसमें लिखा है कि मुक्तेश्वर महादेव के महात्म्य स्थानीय लोग बताते हैं कि आर्थिक रूप से कम सक्षम होने या किसी और कारण से इस इलाके के जो लोग अपने दिवंगत परिजनों की अस्थियां विसर्जन या उस क्रम के पूजा विधान आदि के लिए हरिद्वार नहीं जा पाते वे लोग ऐसा मुक्तेश्वर धाम महादेव में ही कर लेते हैं. इस वजह से पठानकोट के मुक्तेश्वर धाम महादेव को छोटा हरिद्वार भी कहा जाता है. हरेक साल महाशिवरात्रि , चैत्र चतुर्दशी , बैशाखी और सोमवती अमावस्या को यहां मेला लगता है . इस अवसरों पर यहां स्नान और दर्शन करना महत्वपूर्ण माना जाता है.

Mukteshwar Mahadev Temple

मुक्तेश्वर महादेव तक पहुंचने की सीढियां

वैसे तो यहां साल भर में कभी भी आया जा सकता है लेकिन सर्दियों में थोड़ा ठंडक ज्यादा होती है. नदी का किनारा और पहाड़ी क्षेत्र होने के कारण हवा भी तेज़ होती है और उसमें ठंडक भी होती है . यहां ठहरने का कोई पुख्ता बंदोबस्त नहीं है. एक बड़ा सा बरामदा ज़रूर है जहां बिस्तर बिछाकर आराम किया जा सकता है . वैसे यहां दो तीन घंटे आराम से रुका जा सकता है. महिलाओं के लिए रावी के पानी में स्नान के की व्यवस्था अलग से है . इसके अलावा सुबह से शाम तक लंगर चलता है. इसमें सामान्य खाना तो परोसा जाता है चाय भी उपलब्ध कराई जाती है. यहां जो भी दान देंगे उसकी कंप्यूटराइज्ड रसीद मिलेगी. सुरक्षा की दृष्टि से यहां पर निगरानी के लिए सीसीटीवी भी कैमरे लगाये गये है.

Mukteshwar Mahadev Temple

मुक्तेश्वर महादेव तक पहुंचने की सीढियां

पठानकोट में शाहपुर कंडी बांध के पास स्थित मुक्तेश्वर महादेव मन्दिर तक स्थानीय बस सेवा से या अपने वाहन से पहुंचा जा सकता है. लेकिन इस बात का ख्याल रखना होगा कि मन्दिर दर्शन के लिए सड़क से पहले प्रांगण तक पहुँचने के लिए 250 सीढ़ियां उतरनी होंगी और वापसी में वही चढ़नी भी होंगी. यही नहीं नीचे उतरने के बाद पहाड़ के बीच में बनी गुफाओं तक पहुँचने के लिए भी हरेक मन्दिर के बाहर 15 -20 सीढ़ियाँ चढ़नी होगी. जो लोग लगातार सीढ़ियां चढ़ने – उतरने में सक्षम नहीं हैं या वृद्ध हैं उनके लिए यहां कोई वैकल्पिक बंदोबस्त नहीं है. हां एकाध स्थान पर बीच में सुस्ताने की जगह ज़रूर है. शौचालय आदि की व्यवस्था भी ठीक है.

Mukteshwar Mahadev Temple

रावी नदी का किनारा जहाँ अस्थि विसर्जन भी होता है.

मुक्तेश्वर महादेव मंदिर का इंतजाम ‘ जय बाबा मुक्तेश्वर महादेव प्रबन्धक समिति ‘ देखती है. ज्यादा विवरण के लिए मन्दिर की वेबसाइट kteshwarmahadev.com देखी जा सकती है या फोन नंबर 9417324685 पर संपर्क किया जा सकता है.

मोरनी हिल्स : प्रकृति और वन्य जीवों के बीच वीकेंड मनाने के लिए माकूल जगह

मोरनी हिल्स : प्रकृति और वन्य जीवों के बीच वीकेंड मनाने के लिए माकूल जगह

अगर आप चंड़ीगढ़ या उसके आसपास हैं और कुछ वक्त शोर शराबे से दूर शांत प्राकृतिक वातावरण में बिताना चाहते हैं लेकिन वक्त कम है तो ऐसे में कसौली के अलावा भी एक विकल्प है – मोरनी हिल्स (morni hills ). चंडीगढ़ से सिर्फ 40 किलोमीटर के फासले पर या यूं कहें कि सिर्फ सवा – डेढ़ घंटे की ड्राइव तो गलत न होगा. रास्ता इतना आरामदायक और तरह तरह के अनुभव वाला कि कब ये फासला तय हो गया, इसका पता ही नहीं चलता. देवभूमि हिमाचल की सीमा से लगा मोरनी हिल्स यूं तो हरियाणा के पंचकुला ज़िले का हिस्सा है लेकिन हरियाणा के तमाम इलाकों से एकदम जुदा है. शहर के करीब होते हुए भी भीड़भाड़ और चहल पहल से दूर एक शांत इलाका है मोरनी हिल्स का.

मोरनी हिल्स

टिक्कर ताल

चीड़ और देवदार के पेड़ों के जंगल से भरे मोरनी के आबादी वाले ग्रामीण क्षेत्र में भी आवाजाही ज्यादा नहीं है इसलिए कहीं कहीं सड़कें संकरी होने के बावजूद आने जाने में दिक्कत नहीं होती बशर्ते पहाड़ में वाहन चलाने का अनुभव हो. कई जगह एकदम अचानक आने वाले घुमावदार रास्ते रोमांच पैदा करते हैं लेकिन यहां रफ्तार को एकदम नियंत्रण में रखना ज़रूरी है. मोरनी हिल्स में साल के तकरीबन 8 -9 महीने मौसम खुशगवार ही रहता है. समुद्रतट से 1267 मीटर की ऊंचाई है जबकि चंड़ीगढ़ की 321 मीटर. इससे भी अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि यहां मौसम आमतौर पर ठंडा सा ही रहता होगा. यहां चीड़ और देवदार के घने जंगल हैं. नमी से भरपूर रहने वाले इन खूबसूरत खूब ऊंचे वृक्षों की मौजूदगी भी यहां मौसम के खुशगवार होने का सबूत देती है. इन वृक्षों की एक ख़ास बात और है. हवा चलने पर इनके पत्तों से ऐसी संगीतमय आवाज़ निकलती है जो आसपास पहाड़ से गिरते झरने के बहते पानी के आसपास होने का आभास देती है.
मोरनी हिल्स सिर्फ शान्ति के चाहवानों को ही नहीं वन्य जीव और पक्षी प्रेमियों को भी ये जगह पसंद आती है. बन्दर , लंगूर , चीतल , जंगली सूअर , काले मुर्गे वगैरह ही नहीं यहां तेंदुआ भी गाहे बगाहे मिल सकता है.

मोरनी हिल्स

रायल हट्स रिसोर्ट्स में बादल

मोरनी हिल्स की खूबसूरत वादियों को देखकर तो हैरानी होती है या यूं कहें कि यकीन नहीं होता कि ये जगह मैदानी शहर से इतना करीब है. कहीं कहीं दूर तक दोनों तरफ घने हरे भरे पेड़ों से घिरी चमकदार काली सड़क बरबस ही आपको रुकने और तस्वीर खींचने पर मजबूर कर देगी. और हर दो तीन किलोमीटर के फासले पर छोटी सी कच्ची पक्की दुकान या ढाबा टाइप दिखाई देने वाले ठिकाने पर बड़ा बड़ा लिखा ‘ मैगी – चाय – कॉफ़ी – ऑमलेट’ जैसा आपको न्योता दिखाई देगा. यहां माहौल ही ऐसा बन जाता है कि अगर आप जल्दी में नहीं हैं और बेफिक्री से आये हैं तो ” थोड़ा रुक जायेगी तो तेरा क्या जायेगा …” जैसे गाना खुद ही अपने लिए याद आ जायेगा. यहां न जाने क्यों मैगी और स्नैक्स खाने का स्वाद बढ़ जाता है. हालाँकि यहां दुकान वाले लूटते नहीं हैं फिर भी कोई स्नैक्स आर्डर देने से पहले दाम ज़रूर पूछ लें. शहरी धूल भरी या व्यस्त सडकों से इतर यहां सड़क कहीं कहीं किनारे पेड़ों के झुरमुट के करीब खुले आसमान के नीचे ऐसे ठिकानों पर रुकने का आनन्द भी अलग है. उस पर अच्छी बात ये कि ऐसा मजेदार सफर यहां किसी भी मौसम में किया जा सकता है. इन दुकानों को यहीं के रहने वाले ग्रामीण ही चलाते हैं. अक्सर देखा गया है कि ऐसी चाय स्नैक्स की दुकानो के आसपास गांव का वातावरण होता है जो यहां सैर सपाटा करने आये काफी यात्रियों का पसंद आता है.

मोरनी हिल्स

बालग गांव का रास्ता

मोरनी में जहां तक सैर सपाटा या कुछ दिलचस्प स्थानों की बात करें तो मोरनी में सबसे पहले ज़िक्र होता है टिक्कर ताल का जिसे लोग देखने के लिए आते हैं. हरे भरे पहाड़ों की घाटी में छोटी सी झील का नज़ारा आँखों को भरपूर सकून देता है. विभिन्न प्रजातियों के पक्षियों की यहां अठखेली भरी आवाजाही भी दिलकश है. बोटिंग तो यहां अन्य बहुत सी झीलों की तरह होती ही है लेकिन सितम्बर 2021 को यहां हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने एडवेंचर टूरिस्म की सोच के तहत नई शुरुआत की. यहां वाटर जेट स्कूटर, पैरासेलिंग, पैरा मोटरग्लाइडिंग शुरू की गई. लेकिन एडवेंचर स्पोर्ट्स सस्ता नहीं है और दूसरा इसके लिए वहां जाने से पहले सुनिश्चित कर लें कि ये गतिविधियां (activities) वहां चल रही हैं या नहीं. खासतौर से वहां नये लांच किये गये एडवेंचर स्पोर्ट्स. यूं तो इस स्थान पर ठहरने के लिए हट्स भी हैं और रेस्तरां भी, जिनका इंतजाम हरियाणा टूरिस्म (haryana tourism) करता है लेकिन कई कुछ गतिविधियां निजी ऑपरेटर को ठेके पर दी गई हैं. वाटर स्कूटर की सिर्फ 3 मिनट की राइड के लिए आपको एक हजार रुपये खर्च करने होंगे और 5 मिनट के लिए 1500 रूपये. ये 2 सीटर स्कूटर है लेकिन एक बार में एक ही व्यक्ति टिक्कर ताल में सवारी कर सकता है क्यूंकि पीछे की दूसरी सीट पर ट्रेनर होता है जो हल्का फुल्का स्टंट भी करता है. कुछ देर के लिए ट्रेनर सवारी को भी वाटर स्कूटर चलाने को देता है. तो अगर आप ये सोचकर जाते हैं कि साथी के साथ स्कूटर पर सवारी करेंगे तो ये सम्भव नहीं लगता. वहीं पैरा मोटर ग्लाइडिंग और पैरा मोटर सेलिंग भी सुचारू और नियमित नहीं है.

मोरनी हिल्स

टिक्कर ताल का नज़ारा

यहां एक रात के लिए रूम तकरीबन 2500 रूपये में मिलता है. रेस्टोरेंट में खाने पीने की वैरायटी तो है लेकिन फ़ूड के टेस्ट को लेकर कोई अच्छा फीडबैक नहीं मिलता. यहां आने वाले यात्रियों का कहना था कि टिक्कर ताल में दाम के हिसाब से खाने पीने के सामान की क्वालिटी स्तरीय नहीं है. शायद यही वजह है कि लोग टिक्कर ताल आते हैं नज़ारे देखने और बोटिंग का आनंद लेने लेकिन ठहरने के लिए आसपास के रिसॉर्ट और खाने के लिए हरियाणा टूरिज्म की बजाय अन्य रेस्तरां में जाना ज्यादा पसंद करते हैं.

मोरनी हिल्स

रायल हट्स रिसोर्ट्स का लान

टिक्कर ताल से सात किलोमीटर के फासले पर हरियाणा टूरिज्म (haryana tourism) का ही रेसॉर्ट 16 कमरे वाला माउंटेन क्वेल (mountain quail) है जिसका एक बड़ा रेस्टोरेंट भी हैं. यहां भी कमरे का टैरिफ तकरीबन 2500 रूपये प्रतिदिन की दर से है. माउंटेन क्वेल से भी मोरनी हिल्स का सुन्दर नज़ारा दिखाई देता है. इसके पास ही मुख्य सड़क पर आकर्षण का नया केंद्र बनता जा रहा है हरड़ वाटिका नाम का पार्क जहां औषधीय गुणों वाले पेड़ पौधे लगाये गये हैं. हरियाणा सरकार की तरफ से मुहैया कराई गई मोरनी हिल्स के थापली गांव की इस भूमि पर बाबा रामदेव की संस्था पतंजलि ट्रस्ट की तरफ से इस औषधीय पौधों की पार्क हरड़ वाटिका को विकसित किया गया है. 10 हेक्टेयर क्षेत्र के लिए ये योजना 2018-19 में शुरू हुई थी और यहां 5000 पौधे रोपित करने का लक्ष्य रखा गया था.

मोरनी हिल्स

चंद्रावल कुंज

पैदल चलने के शौक़ीन और पहाड़ी रास्तों पर ट्रेकिंग करने के लिए भी मोरनी हिल्स को विचार में लाया जा सकता है. छोटे छोटे ट्रेक्स पूरे करके पहाड़ी चोटियों से घाटी के नज़ारे कैमरे में कैद करने लायक हैं जिन्हें फोटो फ्रेम करवाकर या यादों की एलबम में संजोकर रखा जा सकता है. ऐसे ही कुछ सुन्दर नज़ारे मुख्य सड़क पर बलाग गांव की शुरुआत में ही ठहरने के लिए बनी शानदार जगह रॉयल हट्स रेसॉर्ट है. ये मोरनी में कमरों के हिसाब से बड़ी गिनी चुनी 5 – 7 रिसॉर्ट्स में से एक है. पहाड़ी ढलान वाली भूमि को सीढ़ीदार बनाकर सीढ़ियों के दोनों तरफ बनाई गई आरामदायक रोशनी दार हट्स और यहां के कमरे प्राकृतिक वातावरण का हिस्सा जैसा लगते हैं. 16 कमरे और तकरीबन 50 से ज्यादा किस्म के पेड़ पौधों वाले रॉयल हट्स रिसोर्ट की बनावट ऐसी है जैसे यहां वन्य वनस्पति स्वत: ही उगी हो. बारिश के दौरान बादल कब आपको छूने कमरे तक आ गये , इसका पता भी नहीं चलेगा. और तो और आपको अचानक कुछ मीटर के फासले पर भी कुछ नहीं दिखाई देगा. यहां कभी आप खुद को बादलों से घिरा तो कभी बादलों से ऊपर महसूस करेंगे. नेचुरल ब्यूटी को निहारते हुए को यहीं से आप चाय कॉफ़ी की चुस्कियों का आनन्द ले सकते हैं. खाने पीने के लिए यहां ज़रूरत का तकरीबन सब कुछ मिल सकता है. क्यूंकि यहां टूरिस्ट की मारामारी नहीं रहती इसलिए न तो खाने पीने की सामग्री हमेशा तैयार रहती है और न ही यहां ग्राहकों की यहां भीड़ भाड़ है इसलिए जो भी सामान होता है मार्केट से फ्रेश लाकर बनाया जाता है. ये अच्छी बात भी है लेकिन इसके लिए कुक को थोड़ा वक्त ज़रूर चाहिए होता है. ये हालात यहां का स्टाफ बेहद विनम्रता से आपको समझा देता है. चाहें तो अपने हिसाब से खाना बनवा सकते है. यहां रूम सर्विस सुबह से देर रात तक उपलब्ध है. वैसे किचन स्टाफ हमेशा रहता है जो इमरजेंसी में हर तरह की मदद को तैयार भी रहता है.

मोरनी हिल्स

टिक्कर ताल का दृश्य

हरियाणा टूरिज़्म के मुकाबले 30 से 35 फीसदी सस्ता होने के अलावा भी यहां आपको और किफायत भी हो सकती है अगर आप ग्रुप के साथ आना चाहें या तीन – चार दिन रुकना चाहें. इस बारे में यहां के प्रबन्धक और मालिक कहते हैं कि यर सब हमारी और मेहमान की ज़रूरत पर निर्भर करता है. फैमिली और दोस्तों के साथ वीकेंड आउटिंग के लिए मोरनी में रॉयल हट्स रेसॉर्ट एक अच्छी जगह के तौर पर चुनी जा सकती है. यहां रहने के दौरान बालग गांव की तरफ नीचे उतरने पर कुदरती पानी की बावली भी मिल जाती है. इसका पानी रोजमर्रा के काम के अलावा यहां के गांव वाले पीने तक में इस्तेमाल करते है.बावली के आसपास ग्रामीणों के थोड़े से घर हैं जहां आपको ग्रामीण और शहरी जीवन की आधुनिकता की मिलीजुली झलक भी मिलेगी. यहीं सीढ़ीदार खेतों और इर्द गिर्द पेड़ों में लंगूर भी मिल सकते हैं और तेंदुआ भी. लेकिन लोग कहते हैं कि उस हालत में डरने की ज़रूरत नहीं है. शर्मीले स्वभाव का तेंदुआ इंसान को देखकर खुद ही अपना रास्ता बदल लेता है. वो तब तक इंसान के व्यवहार पर प्रतिक्रियात्मक उत्तर नहीं देता जब तक उसे इंसान से खतरा महसूस नहीं होता. वैसे लोग भी बताते हैं कि मोरनी क्षेत्र में तेंदुए के किसी इंसान पर हमला करने की घटना नहीं सुनी गई.

मोरनी हिल्स

रिसोर्ट माउंटेन क़्वैल

रॉयल हट्स रेसॉर्ट ( royal huts resort ) से थोड़ा ऊपर की तरफ जाएंगे तो ट्रेकिंग के लिए एक अच्छा अवसर मिल सकता है. वहां से चन्द्रावल कुंज रेसोर्ट के लिए रास्ता जाता है. उसी के ठीक सामने पहाड़ी पर ऊपर जाने की पगडंडी है. देवदार और चीड़ के जंगल वाले इस पहाड़ पर ट्रेकिंग 10 मिनट के करीब ही होगी लेकिन संभल कर जाना होगा. यहां छोटी से उस टिक्कर ताल का सुंदर नज़ारा देखा जा सकता है जहां तक सड़क का 7 .5 किलोमीटर का फासला तय करना होता है. अगर मौसम साफ़ है तो यहां से टिक्कर ताल के पानी में चलती नाव भी आपको दिखाई देगी. मोरनी हिल्स में चन्द्रवल कुंज भी ठहरने के लिए एक अच्छा स्थान हो सकती है लेकिन यहां चार ही हट्स हैं. वैसे यहां के बड़े से सुन्दर लॉन में कैम्पिंग का भी आनंद लिया जा सकता है. यहीं पर रेस्टोरेंट भी है. लेकिन यहां मांसाहार खाना नहीं लाया जाता. कर्मचारी बताते हैं कि इसका एक कारण तेंदुआ भी है जो मांस की महक के कारण यहां आ सकता है.

मोरनी हिल्स

ट्रैकिंग के लिए एक मौका भी.

मोरनी हिल्स में देखने के लिए नाहन के राजा का एक किला भी है जो 17 वीं शताब्दी का बताया जाता है. इस किले को अब प्रकृति के संग्रहालय में तब्दील कर दिया गया है. प्रकृति और इसके इतिहास को समझने के लिए ये एक अच्छा स्थान है. बच्चों और खासतौर से जिज्ञासु स्वभाव वाले लोगों के लिए ये आकर्षण का केंद्र है.

मोरनी हिल्स

रायल हट्स रिसोर्ट्स के कमरों से भी बाहर का सुंदर नज़ारा दिखता है.

चंड़ीगढ़ और उसके आसपास के क्षेत्रों में रहने वालों के लिए वीकेंड बिताने के लिए तो मोरनी हिल्स अच्छी जगह है ही, पूरा दिन अकेले बिताने के लिए जवान जोड़ों या अविवाहित जोड़ों ने भी अपनी पसंद बना लिया है. आसपास की यूनिवर्सिटी /कॉलेज में पढ़ने वाले युवा यहां जोड़ों में या ग्रुप में दिखाई दे जाते है.

मोरनी जाने वालों को एक बात का ख़ास ख्याल रखना पड़ेगा और वो ये कि अगर आप यहां कुछ दिन रहकर वाहन से इधर उधर जाने की सोचें तो इसके लिए अपने वाहन में पेट्रोल /डीज़ल पर्याप्त मात्रा में भरवा लें. मोरनी हिल्स में पेट्रोल पंप नहीं है. दूसरा इस बात का भी ख्याल रखें कि यहां रहने के लिए इस बात के लिए तैयार रहें कि आपको सीढ़ियां चढ़नी उतरनी होंगी. साथ ही आते जाते समय अपने सामान को बंदरों की पहुंच से दूर रखें.

ऐतिहासिक कस्बे लाडवा में स्टाइल और स्वाद वाली ट्रेंडी जगह है ओटीसी फूड कोर्ट

ऐतिहासिक कस्बे लाडवा में स्टाइल और स्वाद वाली ट्रेंडी जगह है ओटीसी फूड कोर्ट

चंडीगढ़ – दिल्ली के बीच यानि हाई- वे 44 पर गुजरते समय पीपली से बायीं तरफ मुड़ने के बाद करीब दस किलोमीटर तक सड़क किनारे खेत खलियान और इक्का दुक्का फैक्ट्री या गोदाम जैसी जगह देखने से लगता है कि आप एक साधारण से ग्रामीण इलाके से गुज़र रहे हैं. सहारनपुर की तरफ जाते इस राजमार्ग के थोड़ी शहरी आबादी का अहसास कराते हिस्से में प्रवेश करते ही दिखाई देने वाली एक छोटी सी बिल्डिंग अचानक एक झटका सा देती है. भारत के किसी शहर में आधुनिक छोटे मोटे मॉल या शॉपिंग काम्प्लेक्स की सी फीलिंग देती ये जगह इतनी जिज्ञासा तो पैदा कर ही देती है कि आप एक बार भीतर ज़रूर जाएँ. बड़ी बड़ी कांच की खिड़कियों (Glass Window) और उसी तरह के दरवाज़े वाली रंग बिरंगी दीवार पर पूरे स्टाइल में बड़ा बड़ा लिखा आई लव लाडवा (I Love Ladwa) भी बरबस ही ध्यान खींच लेता है जिसमें ‘ लव ‘ के प्रतीक के तौर पर दिल की आकृति है.यही इस जगह के नाम और वजूद से भी रूबरू करवा देता है.

ओटीसी फूड कोर्ट

ऐतिहासिक कस्बे लाडवा में स्टाइल और स्वाद की झलक

ये है लाडवा…. ! कुछ महत्वपूर्ण होने के बावजूद भारत के हरियाणा राज्य के नक्शे में खो सा गया एक नगर. यहीं पर बस स्टैंड के सामने ये बिल्डिंग है जिस पर बड़ा बड़ा लिखा है ओटीसी फूडकोर्ट (OTC Foodcourt) औत होटल पैराडाइस (Hotel Paradise ). कुछ चीज़ों के बारे में पक्के तौर पर यकीन तब तक नहीं होता जब तक हम खुद देख ,सुन और समझ कर परख न लें या फिर जब तक भरपूर तरीके से महसूस न कर लें. कुछ कुछ ऐसे ही ख्यालों के साथ यहाँ भी अपना भीतर जाना हुआ.

ओटीसी फूड कोर्ट

ऐतिहासिक कस्बे लाडवा में स्टाइल और स्वाद की झलक

किस्म किस्म के लोकप्रिय भारतीय व्यंजनों के साथ साथ अलग अलग तरह के सैंडविच , बर्गर और इटेलियन पिज़्ज़ा पास्ता से लेकर तमाम तरह के और भी विदेशी खाने ऐसी जगह पर मिल सकते हैं इसका जल्दी से यकीन नहीं होता. यही नहीं, साथ ही ये दावा भी कि खाने में स्वाद में कोई कमी नहीं होगी. किस्म किस्म के लोकप्रिय भारतीय व्यंजनों के साथ साथ अलग अलग तरह के सैंडविच, बर्गर और इटेलियन पिज़्ज़ा पास्ता से लेकर तमाम तरह के और भी विदेशी खाने ऐसी जगह पर मिल सकते हैं इसका जल्दी से यकीन नहीं होता. अच्छा बड़ा मैन्यू (Menu). मैन्यू से नज़र हटी तो सामने एक कोने में माकटेल और शेक्स कॉर्नर (Mocktail and Shakes corner) साथ ही एक ऑप्शन हेल्दी फ़ूड (Healthy Food ) का भी दिखाई दे रहा था. यानि आप कुछ न कुछ तो ऑर्डर किये बिना रह ही नहीं सकते चाहे आपको भूख हो या न हो.

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ऐतिहासिक कस्बे लाडवा में स्टाइल और स्वाद की झलक

खैर शुरुआत की सूप और सैंडविच के साथ तो समझ आ गया कि खाने के स्वाद में कोई कमी न होने का दावा यहाँ गलत नहीं है. स्नैक्स से शुरुआत अच्छी रही. मेन कोर्स भी लज़ीज़ था. वहीं सर्विस की रफ्तार भी ठीक ठाक थी. हां थोड़ी ट्रेनिंग और हो तो सर्विस परफेक्ट हो जाएगी. ओटीसी फ़ूड कोर्ट में फर्नीचर साधारण ज़रूर है लेकिन विकल्प के साथ उपलब्ध है – कुर्सी लो या चाहो तो सोफा. आरामदायक दोनों ही हैं . ग्राउंड फ्लोर पर ही रेस्तरां है और भीतर से बैठे बैठे खाते पीते बाहर का नज़ारा दिखाई देता रहता है. ये माहौल के खुलेपन का भी अहसास कराता है. दोस्तों का ग्रुप हो या फैमिली के साथ आना हो , हर हिसाब से जगह फिट है. दो तरफ से एंट्री और एग्जिट के साथ वाहन खड़ा करने की काफी जगह भी है. कुल मिलाकर एक लम्बे सफर के बीच यहां फ्रेश होने और थकान मिटाने के साथ सुंदर भी भी स्वाद भरी पेट पूजा का एक अच्छा मौका भी मिला. वेजिटेरियन भी और नॉन वेजिटेरियन भी यहां उसी शिद्दत से बनाये और परोसे जाते हैं.

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ऐतिहासिक कस्बे लाडवा में स्टाइल और स्वाद की झलक

थोड़ा आराम मिला तो इस दिलचस्प सी लगने वाली जगह को और जानने की इच्छा हुई. बातचीत के दौरान , यहां के ओटीसी के मालिक आयुष गुप्ता ने यहां की दूसरी मंज़िल पर जाकर देखने का आग्रह किया. …और ये भी बढ़िया रहा. दरअसल, खुलेपन के शौक़ीनों के लिए ये ओटीसी फ़ूडकोर्ट का टैरेस है. बेशक छोटा है लेकिन 10 -15 दोस्तों या दो तीन परिवारों के लिए पर्याप्त है. यहाँ कुदरत से मेल खाती साज सज्जा है. रेट्रो लुक वाला फर्नीचर यहाँ का आकर्षण है. युवा वर्ग के लिए खासतौर पर ये मज़ेदार है. खुले आसमान के भरपूर नज़ारे के साथ साथ यहाँ रेस्तरां के बैक साइड में हरियाली से भरपूर खूबसूरत ओपी जिंदल पार्क के पेड़ पौधों का आनन्द लिया जा सकता है. सेल्फी और फोटोग्राफी के शौकीनों के लिए भी ओटीसी फूड कोर्ट का टेरेस बेहतरीन स्पॉट है. सर्दी में धूप सकते हुए खाओ पियो या शाम के चाँद तारों की कुदरती रोशनी का आनंद लो.

ओटीसी फूड कोर्ट

ऐतिहासिक कस्बे लाडवा में स्टाइल और स्वाद की झलक

आयुष के साथ ओटीसी फूड कोर्ट को इस स्टाइल से डिजाइन और विकसित में उनके साझीदार मित्र डॉ अमन पंजेठा का अहम रोल है. दोनों अलग अलग पेशे से हैं. मीडिया से जुड़े रहे आयुष जहां फ्लैक्स प्रिंटिंग और प्रचार जैसे कारोबार में है तो डॉ पंजेठा शिक्षाविद हैं. बड़े मिलनसार लाडवा के रहने वाले ये दोनों शख्श कला के पारखी और खाने पीने का शौक तो रखते ही है कुछ नया करने की भी हर वक्त कोशिश करते हैं. ओटीसी फूड कोर्ट का बनना भी उनकी इसी सोच का नतीजा है जो इसी साल (जुलाई 20 21 ) में शुरू किया गया. साथ ही होम डिलीवरी भी की जाती है. आयुष गुप्ता बताते हैं कि ये लाडवा का पहला फूड कोर्ट है और यहां सबसे ज्यादा वैरायटी तो मिलती है है होस्पिटेलिटी (hospitality) के दूसरे आयाम भी हैं.

लाडवा के ओटीसी फूडकोर्ट के बेसमेंट में बना छोटा सा पार्टी हाल इस जगह के मालिकों की उस सोच का हिस्सा है जो अपने यहां के लोगों को वो तमाम सहूलियत देना चाहते हैं जिसके लिए उन्हें दूर जाना पड़ता है. ये एयर कंडीशंड पार्टी हाल (air conditioned party hall ) छोटे मोटे पारिवारिक कार्यक्रमों के लिए ठीक है लेकिन यहां सबसे ज्यादा बच्चों के बर्थडे सेलिब्रेट होते हैं. असल में इसको डिज़ायन भी इसी तरह किया गया है कि ये बर्थडे सेलिब्रेशन (birthday celebration) की ज़रूरतों को पूरा कर सके. एक कोने में गीत संगीत का बन्दोबस्त तो छोटा सा डांस फ्लोर भी है. आयुष कहते हैं कि पार्टी हाल की इतने डिमांड हो जाती है कि कभी कभी तो एक दिन में दो बर्थडे भी यहां मनाये जाते हैं.

मजे की बात है कि ओटीसी फूडकोर्ट ने अपने नयेपन या अलग स्टाइल से चीज़ों को करने के अपने सिलसिले को लगातार बढ़ाते हुये एक और शुरुआत कर दी. ये है वीकेंड म्यूजिकल इवनिंग (weekend musical evening ) यानि खाना भी और गाना भी. बड़ी बड़ी जगहों पर अमल में लाये जाने वाले इस कॉन्सेप्ट के साथ यहां बैंड की लाइव परफोर्मेंस के बीच डिनर का मज़ा लिया जा सकता है. पहली बार में किया गया ये प्रयोग सफल रहने से आयुष और डॉ पंजेठा का उत्साह बढ़ा है. वे बताते हैं कि जगह और सीटें सीमित होने के कारण उन्होंने म्यूजिकल इवनिंग डिनर के लिए 50 मेहमान ही आमंत्रित किये थे लेकिन डिमांड ज्यादा की हो गई थी. बावजूद इसके वे बस 2 और मेहमानों को ही एडजस्ट कर सकते थे. एक बात तो बताई ही नहीं – ओटीसी (otc ) का मतलब. असल में इसकी फुल फॉर्म (full form ) है ओल्ड टाइम कैफे (old time cafe ). आयुष बताते हैं कि पहले इसी नाम से उन्होंने एक कैफे की शुरुआत की थी लेकिन ग्राहकों की बढ़ती संख्या और वैरायटी की मांग को पूरा करने के लिए उन्हें ज्यादा बेहतर और बड़ी जगह की ज़रुरत थी लिहाज़ा उन्होंने यहां उसी नाम से फूडकोर्ट बनाया

लाडवा :

ओटीसी फूड कोर्ट

ऐतिहासिक कस्बे लाडवा में स्टाइल और स्वाद की झलक

तकरीबन 60 हज़ार की आबादी वाला लाडवा हरियाणा का एक ऐसा कस्बा है जो शहरीकरण की रफ्तार पकड़ रहा है. कृषि आधारित अर्थव्यवस्था वाला लाडवा अपनी अनाज मंडी के लिए लोकप्रिय है. अलग अलग वर्गों और मजहबों को मानने वाले लोगों की यहां आबादी है. हाल के वर्षों में यहां अगर कुछ चर्चा योग्य हुआ तो वो रहा यहां खूबसूरत ओपी जिंदल पार्क का निर्माण और उसमें स्थापित 200 फुट से भी ज्यादा उंचाई पर भारत के राष्ट्र ध्वज तिरंगे का फहरना. यहां हरियाणा का सबसे ऊंचे ध्वज स्तम्भ है लेकिन काफी समय से ध्वज गायब है. एक ज़माने में सिख राजा गुरदित सिंह और उसके बाद उनके बेटे राजा अजीत सिंह की रियासत रही लाडवा का योद्धा पैदा करने का इतिहास भी रहा. अमृतसर के पास के एक गांव के रहने वाले राजा गुरदित सिंह का ज़िक्र विदेशी इतिहासकारों ने सराहना करते हुए किया है.

राजा गुरदित सिंह :

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राजा अजीत सिंह के ज़माने के लाडवा किले के अवशेष की एक दीवार पर चित्रकारी की तस्वीर. अब इस किले का नामों निशान तक नहीं है (साभार द ट्रिब्यून)

राजा गुरदित सिंह की वीरता का इतिहास सर लेपल हेनरी ग्रिफ्फिन की किताब ‘ द पंजाब चीफ्स ‘ ( the punjab chiefs ) में मिलता है और इसके मुताबिक़ एक योद्धा के तौर पर राजा गुरदित सिंह के करियर की शुरुआत 1758 में हुई थी जब वे मीत सिंह रोहेला की फ़ोर्स में शामिल हुए थे. राजा गुरदित सिंह ने काबुल से आये हमलावर शाह ज़मन दुर्रानी का 1798 में जींद में मुकाबला किया था. राजा गुरदित सिंह ने सितंबर 1803 में दिल्ली को बचाने के लिए मराठा सरदार सिंधिया की सेना का साथ देते हुए अंग्रेज़ जनरल लेक का मुकबला भी किया था. राजा गुरदित सिंह की रियासत में लाडवा के 94 गांव के बद्दोवाल , जगरांव , पद्दी , शेखपुरा , सिंघोर के कई गांव तो थे ही इंद्री नगर और सिकंदरा के गांव भी थे. राजा गुरदित सिंह की सेना में 1500 से ज्यादा घुड़सवार (cavalry ) , 400 इन्फेंटरी जवान , 6 छोटी और 2 बड़ी तोपें भी थीं. यही नहीं महाराजा रणजीत सिंह के समय में स्थापित सिख साम्राज्य के सतलज के इस पार के क्षेत्र के वो अकेले ऐसे राजा थे जिन्होंने अंग्रेज़ हुकूमत के आगे घुटने नहीं टेके थे. आखिरी सांस तक उन्होंने अंग्रेजों की नाक में दम किये रखा और लाडवा को उनके चंगुल में जाने से बचाए रखा. उनके पास तीन किले थे – लाडवा , इंद्री और करनाल. अंग्रेजों ने 1805 -06 करनाल को अपने कब्ज़े में ले लिया था लेकिन राजा गुरदित से यहाँ मुकाबला करने के लिए उनको भरपूर सैन्य ताकत लगानी पड़ी थी.

राजा अजीत सिंह :

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लाडवा के राजा अजीत सिंह की तस्वीर जो पंजाब डिजिटल लाइब्रेरी से मिली.

 

राजा गुरदित सिंह की वीरता और परम्परा का उनके पुत्र राजा अजीत सिंह (Raja Ajit Singh ) ने भी पालन किया. पिता से विरासत में मिली वीरता और शासन को मज़बूत किया. अंग्रेजों की तरफ से बढ़ते खतरे को भांपते हुए राजा अजीत सिंह ने लाडवा किले को मज़बूत किया. उन्होंने अंग्रेज़ हुकूमत और उसकी सेना से लड़े गए 1845 पहले ब्रिटिश -सिख युद्ध में हिस्सा लिया. हालांकि ये युद्ध वे हार गये थे और उनका राजपाट ज़ब्त कर लिया गया था. उनको बंदी बनाकर इलाहाबाद के किले में कैदी की तरह रखा गया था लेकिन वहां पर पहरेदारों की हत्या करके राजा अजीत सिंह ने खुद को आज़ाद कर लिया था. इसके बाद के उनके इतिहास की पुख्ता जानकारी नहीं है. माना जाता है कि लाडवा के राजा अजीत सिंह इसके बाद कश्मीर के पर्वतीय क्षेत्रों में चले गए थे.

बाला सुंदरी मन्दिर :

हालांकि लाडवा में अब उस इतिहास की स्मृतियों को संजोकर नहीं रखा गया. राजा अजीत सिंह का बनाया लाडवा का किला मटियामेट हो चुका है. वहां बाज़ार की दुकानें बना दी गईं. हां उनके द्वारा स्थापित किया गया बाला सुन्दरी देवी मन्दिर ( Bala Sundari Temple) यहां ज़रूर है. कहा जाता है कि रियासत में अराजकता के दौर में राजा को मां बाला सुन्दरी ने कन्या के रूप में दर्शन दिए और हिमाचल प्रदेश के त्रिलोक पुर स्थित मन्दिर से पिंडी लाकर यहां स्थापित करने को कहा. राजा अजीत सिंह त्रिलोकपुर से पैदल यात्रा करके पिंडी सर पर उठाकर लाये और इस मन्दिर का जीर्णोद्धार किया. नवरात्रों में लाडवा के बाला सुन्दरी मन्दिर में बड़ा मेला लगता है. यहां मां बाला सुन्दरी की विशाल प्रतिमा भी स्थापित है. सिखों की आबादी और गुरुद्वारों की मौजूदगी यहां अच्छे से दिखाई देती है. कुछ मुस्लिम आबादी और पीर की दरगाह और मस्जिद भी दिखती हैं.

लद्दाख में सैर सपाटे बढ़ाने के लिए आज से ख़ास शुरुआत

लद्दाख में सैर सपाटे बढ़ाने के लिए आज से ख़ास शुरुआत

केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख के उप-राज्यपाल राधा कृष्ण माथुर और केंद्रीय पर्यटन, संस्कृति और पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास मंत्री  जी. किशन रेड्डी 26 से 28 अगस्त 2021 तक लेह में आयोजित किए जाने वाले मेगा-पर्यटन कार्यक्रम “लद्दाख: नई शुरुआत, नए लक्ष्य” को संबोधित करेंगे. श्री रेड्डी इस कार्यक्रम में वर्चुअल रूप से शामिल होंगे.  इस कार्यक्रम के दौरान लद्दाख क्षेत्र के समग्र विकास पर केंद्रित दस्तावेज “लद्दाख के लिए एक पर्यटन विजन” का विमोचन किया जाएगा. यह दस्तावेज़ सतत पारिस्थितिक प्रथाओं की पृष्ठभूमि में स्थानीय सामग्री और मानव संसाधनों के निर्माण की परिकल्पना करता है.  लद्दाख के सांसद  जम्यांग त्सेरिंग नामग्याल,  लद्दाख के पर्यटन और संस्कृति सचिव  के. महबूब अली खान, भारत के पर्यटन  सचिव अरविंद सिंह और अन्य गणमान्य लोग इस कार्यक्रम में शामिल होंगे.

लद्दाख का पर्यटन

भारत सरकार  का पर्यटन मंत्रालय , लद्दाख प्रशासन के पर्यटन विभाग और एडवेंचर टूर ऑपरेटर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (एटीओएआई) के सहयोग से 25 से 28 अगस्त, 2021 तक “लद्दाख: नई शुरुआत, नए लक्ष्य” कार्यक्रम का आयोजन कर रहा हैं. इसका मकसद  साहसिक (adventure ) , संस्कृति और जिम्मेदार पर्यटन के पहलुओं पर ध्यान केंद्रित करते हुए लद्दाख को एक पर्यटक स्थल के रूप में बढ़ावा देना है.  इस कार्यक्रम का मकसद उद्योग के हितधारकों को स्वदेशी उत्पाद प्रदान करना और देश के बाकी हिस्सों के टूर ऑपरेटरों/खरीदारों के साथ बातचीत करने के लिए स्थानीय हितधारकों को एक मंच मुहैया  करना है.

लद्दाख का सौंदर्य

पर्यटन मंत्रालय की तरफ से जारी बयान  में कहा गया  है कि घरेलू पर्यटन देश के पर्यटन क्षेत्र के समग्र विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. पर्यटन मंत्रालय घरेलू पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए तरह तरह  की प्रचार गतिविधियों करता है जिनका ख़ास मकसद  पर्यटन स्थलों और उत्पादों के बारे में जागरूकता बढ़ाना, पूर्वोत्तर प्रांत ,  लद्दाख और जम्मू-कश्मीर जैसे प्राथमिकता वाले क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करते हुए घरेलू पर्यटन को बढ़ावा देना है.

इस कार्यक्रम में तकरीबन  150 प्रतिभागियों के शामिल होंगे  जिनमें ओपिनियन मेकर,  टूर ऑपरेटर, होटल व्यवसायी, राजनयिक,  होमस्टे मालिक, भारत सरकार और केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख के वरिष्ठ अधिकारी  और मीडियाकर्मी शामिल हैं.  इस तीन दिवसीय कार्यक्रम में लद्दाख की पर्यटन सुविधाओं और पर्यटन उत्पादों को दर्शाने के लिए प्रदर्शनी, पैनल चर्चा, व्यवसाय से व्यवसाय के बीच  (B to B )  बैठकें, तकनीकी पर्यटन, सांस्कृतिक संध्या  (cultural evenings ) जैसी गतिविधियों शामिल  की जायेंगी.

लद्दाख की संस्कृति

25 अगस्त कोव्यवसायियों की बैठकें ,  26 अगस्त को पर्यटन से संबंधित विभिन्न विषयों को शामिल करते हुए पैनल  चर्चाएँ  होंगी जबकि  27 अगस्त को प्रतिनिधि दो अलग-अलग समूहों में चिलिंग और लिकिर का तकनीकी दौरा करेंगे.
हालांकि कोविड-19 महामारी ने दुनिया को एक अप्रत्याशित रूप से प्रभावित किया है और इसने एक ठहराव पैदा किया है, लेकिन मंत्रालय का कहना है कि अब रिकवरी के संकेत देखे जा रहे हैं और देश में लोगों की आवाजाही शुरू हो गई है.  यात्रा के तमाम साधन यानि एयरलाइंस,  ट्रेन और राजमार्गों पर घरेलू पर्यटन खंड में पर्यटन यातायात में नियमित बढ़ोतरी की जानकारी मिल रही है. ऐसे में  मंत्रालय ने भी उद्योग हितधारकों की भागीदारी के साथ पर्यटन को बढ़ावा देना शुरू कर दिया है. विज्ञप्ति में कहा गया है कि  पर्यटन मंत्रालय विभिन्न अभियानों और पहलों जैसे ‘देखो अपना देश’ के माध्यम से घरेलू और अंतरराष्ट्रीय बाजारों में लद्दाख को बढ़ावा दे रहा है.   लद्दाख के बारे में एक समर्पित वेबिनार का भी आयोजन किया गया था.  अतुल्य भारत वेबसाइट और  मंत्रालय के सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म, प्रिंटिंग ऑफ फ्लायर्स आदि के ज़रिये भी लद्दाख का प्रचार किया जाता है.