चप्परचिड़ि ..! पंजाब का छोटा सा एक गांव ज़रूर है लेकिन सूबे और सिख इतिहास के हिसाब से बेहद महत्वपूर्ण है. अगर आप चंडीगढ़ के आसपास हैं या घूमने के लिए पंजाब जा रहे हैं तो चप्परचिड़ि ज़रूर जाना चाहिए. भारत में मुगलिया आक्रांताओं के अंत की एक और शुरुआत दरअसल यहां पर उस जंग से हुई थी जिस जंग में गुरु गोबिंद सिंह के दाहिना हाथ माने गये योद्धा बन्दा सिंह बहादुर ने फतेह हासिल की थी. चप्परचिड़ि में युद्ध के मैदान में बन्दा सिंह बहादुर ने सरहिंद के ज़ालिम शासक वज़ीर खान को मारकर गुरु गोबिंद सिंह के छोटे दो साहिबजादों की बेहद दर्दनाक और हैवानियत भरे तरीके से दी गई मौत का बदला लिया था. वज़ीर खान ने इन बच्चों ज़ोरावर सिंह और फतेह सिंह को दीवार में ज़िंदा चिनवाया था. बन्दा सिंह बहादुर की चप्परचिड़ि जंग की जीत को ज़हन में जिंदा रखने के लिए यहां पर एक शानदार यादगार बनाई गई है. यहां बना 328 फुट ऊंचा फतेह बुर्ज़ इस यादगार का सबसे बड़ा आकर्षण है. इसे भारत में स्थापित सबसे ऊंची जंगी यादगार (war memorial) कहा जा सकता है.

चप्परचिड़ि

चप्परचिड़ि युद्ध स्मारक

चप्परचिड़ि यादगार पंजाब की राजधानी चंडीगढ़ से तकरीबन 15 किलोमीटर के फासले पर 20 एकड़ क्षेत्र में फैले मैदान में हरे भरे लान और पेड़ों के झुरमुटों से भरा एक खूबसूरत स्थान है. किलेनुमा ऊंची ऊंची दीवारों के बीच विशाल दरवाजे से प्रवेश करते ही सामने तीन मंजिलों में बने फतेह बुर्ज़ के दर्शन होते हैं. अष्टभुजा आकार वाले इस मीनार रुपी इमारत की हरेक मंजिल किसी एक जंगी फतेह को दर्शाती है. 67 फुट की मंजिल समाना, 117 फुट वाली साढौरा फतेह और सबसे ऊपर चप्परचिड़ि फतेह वाली मंजिल 220 फुट ऊंची है. बुर्ज़ बनाने में ई पीडीएम जाल का इस्तेमाल किया गया है और इसका भीतरी हिस्सा आरसीसी का है जो हर तरह के भूचाल के झटके को सह सकता है. दीवारों को स्टील पिलरों की सपोर्ट दी गई है और दावा किया गया है कि ये मीनार 180 किलोमीटर की रफ्तार से आने वाले तूफ़ान को भी झेल सकती है. सबसे ऊपर कलश और सिख प्रतीक खंडा स्थापित किया गया है. बुर्ज़ की दीवारों में वैसी तिकोनी खिड़कियां बनाई गई हैं जिनके पीछे छिपकर सैनिक बाहर की तरफ मौजूद या आगे बढ़ते दुश्मन पर नज़र रखते थे और वहीं पर रखी बन्दूकों से निशाना साधते थे. इसके सामने साफ़ पानी का तालाब और अलग अलग टीलों पर बाबा बन्दा सिंह बहादुर और उनके पांच जरनैलों फतेह सिंह, आली सिंह, माली सिंह, बाज सिंह और राम सिंह के बुत हैं जिनका रंग सलेटी है और वेशभूषा योद्धाओं वाली है. ये बुत भारत के उस मशहूर मूर्तिकार प्रभात राय ने बनाए हैं जिनकी ख्याति अब विदेशों में भी पहुंच चुकी है.

चप्परचिड़ि

चप्परचिड़ि युद्ध स्मारक

टीलों पर बुतों की स्थापना :

चप्परचिड़ि युद्ध स्मारक में टीलों पर इन बुतों को स्थापित करने का विचार यहां हुए युद्ध के ऐतिहासिक तथ्यों को ज़ाहिर करने के मकसद से आया था. असल में, चप्परचिड़ि में 12 मई 1710 को लड़े गए युद्ध की जो कहानी लोकप्रिय है उसके मुताबिक़ सरहिंद के शासक ने बन्दा बहादुर सिंह की सेना से मुकाबले के लिए ये मैदान चुना. उसने मैदान के हिस्से में अपनी सैनिकों को तैनात कर दिया बाकी बचे हिस्से में काफी जगह ऐसी ऊंची नीची थी कि उसे पार करने के लिए दौड़ना या सैनिकों के लिए घोड़ों को तेज़ दौड़ाना मुश्किल था. यहां रेत के टीले थे. लेकिन बंदा सिंह बहादुर ने मैदान की इसी कमी को अपने पक्ष में फायदेमंद साबित कर दिया. उन्होंने इन टीलों की ऊंचाई का फायदा उठाया जहां से दूर तक नज़र जाती थी और रणभूमि में अपने और दुश्मन सैनिकों की वास्तविक स्थिति का सही अंदाज़ा लग जाता था. इससे उनको जीत के लिए समर नीति बनाने में सहूलियत होती थी. ऊंचाई से देखते हुए सही तरीके से निर्देश भी दिए जा सकते हैं. यहां बनाए गए 6 टीलों में से चार तो मिट्टी के है और 2 सीमेंट व कंकरीट के मिक्सचर से बने हैं.

चप्परचिड़ि

चप्परचिड़ि युद्ध स्मारक

शाम को रंगबिरंगी रोशनी में अलग है नज़ारा :

फतेह बुर्ज़ की यहां के तालाब में दिखने वाली छाया एक अलग नज़ारा पेश करती है. दिन में दूर से ही दिखाई देने वाला ये बुर्ज़ शाम को बिलकुल अलग छटा बिखेरता है जब इस पर अलग अलग रंग की रोशनी डाली जाती है. हर मंजिल को अलग रंग की लाइट से सराबोर किया जाता है. इसी तरह टीलों पर स्थापित बाबा बंदा सिंह बहादुर और उनके जरनैलों के बुतों पर भी अलग से लाइटिंग की जाती है तो वे और निखर के सामने आते हैं. यहां लाइट के रंग बदलते रहते हैं जिससे पूरा क्षेत्र जगमगाता रहता है. फतेह बुर्ज़ की तिकौनी खिड़कियों से लम्बी धार की तरह दूर ऊंचाई तक जब रंगबिरंगी रोशनी पहुंचती है तो नज़ारा अद्भुत होता है.

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चप्परचिड़ि युद्ध स्मारक

बदलाव की कोशिश :

चप्परचिड़ि में जंगी यादगार का उद्घाटन 1911 में हुआ था. पंजाब में 2012 में प्रकाश सिंह बाद के नेतृत्व में बनी शिरोमणि अकाली दल की सरकार ने यहीं पर शपथ ग्रहण किया था. चप्पर चिड़ि यादगार की देखभाल का ज़िम्मा सरकारी एजेंसी ग्रेटर मोहाली डेवलपमेंट अथॉरिटी (gmada) के पास था. इसके बाद आई कांग्रेस सरकार ने इस स्थान को लेकर बेरुखी अपनाई रखी और वैश्विक महामारी कोविड 19 के दौर में यहां के हालात और खराब हो गए. 2021 के उत्तरार्ध में इसे एक प्राइवेट कंपनी को 15 साल के लिए लीज़ पर दिया गया है. पंजाब, सिख इतिहास और विभिन्न युद्धों के बारे में जानकारी देने के लिए यहां फोटो दीर्घा भी है. एक थियेटर भी विकसित किये जाने का प्लान है. द रिपोर्टर यात्रा की टीम जब यहां पहुंची तो इस कंपनी ने काम संभाला ही था और कुछ बेहतर करने की तैयारियां चल रही थीं लेकिन फतेह बुर्ज़ के ऊपर जाना संभव नहीं हो पाया. वहां मौजूद लोगों ने बताया कि ऊपर जाने के लिए लिफ्ट का प्रावधान तो किया गया लेकिन वो चालू ही नहीं हो पाई. सीढ़ियां हैं लेकिन उन पर जाने की मनाही है. तर्क दिया गया कि सीढ़ियों की हालत खस्ता है और मरम्मत का काम चल रहा है.

चप्परचिड़ि

चप्परचिड़ि युद्ध स्मारक

कैसे पहुंचे चप्परचिड़ि :

चप्परचिड़ि युद्ध स्मारक पंजाब में एस ए एस नगर (साहिबज़ादा अजीत सिंह नगर) में है. यहां का गांव चप्परचिड़ि ग्रेटर मोहाली में सेक्टर 91 में है. ये राजधानी दिल्ली से तकरीबन 250 किलोमीटर फासले है. यहां हवाई अड्डा भी नज़दीक है. बस से जाना हो तो चंडीगढ़ के सेक्टर 43 का बस अड्डा इस स्थान के करीब पड़ेगा. वहां से ट्रांसपोर्ट का कोई लोकल साधन ऑटो, टैक्सी आदि मिल सकता है.