परांठा ..! एक ज़माना था जव ये लफ्ज़ सुनते ही दिल्ली वालों के ज़हन में चांदनी चौक की गली परांठे वाली की तस्वीर आती थी. यहां के खुशबूदार पराठों की याद सताने लगती थी. देसी घी में बने अजब ग़जब लज़ीज़ परांठे आज भी वहां मिलते हैं लेकिन दिल्ली के उन परांठों से ज्यादा चर्चा मुरथल के परांठों की होने लगी है. जी हां, मुरथल…!! भारत की राजधानी नई दिल्ली से तकरीबन 50 किलोमीटर दूर एक गांव जो दिल्ली-चंडीगढ़ के हाइवे की शुरुआत में ही पड़ता है. हरियाणा के सोनीपत ज़िले का ये मुरथल गांव कभी परांठों की वजह से अपनी पहचान बना लेगा, ये बात उन लोगों ने भी कभी सोची नहीं थी जिन्होंने खुद इसकी शुरुआत की थी. उन परांठों की ही महिमा है कि मुरथल और आसपास के पूरे क्षेत्र की शक्लो सूरत ही बदल गई है. या यूं कहें कि इन पराठों ने यहां ही नहीं पूरे दिल्ली-चंडीगढ़ हाई वे पर ट्रेवलिंग और हॉस्पिटैलिटी (travelling and hospitality) इंडस्ट्री को जन्म दिया और विकसित किया है.
एक दौर था जब दिल्ली से सुबह सुबह चंड़ीगढ़ की तरफ निकले लोगों के लिए देसी स्टाइल में मिलने वाले ‘सस्ते, स्वाद भरे और झटपट मुहैया होने वाले नाश्ते’ के तौर पर इस परांठे ने पहचान बनाई थी जो साधारण घरेलू चक्की में पिसे गेहूं के आटे से बनता और बिलोये के सफेद मक्खन, दही और अचार के साथ परोसा जाता था. साथ में कांच के धारीदार डिज़ाइन वाले उस गिलास में गाढ़े दूध की चाय भी जिसकी तली का डायामीटर बेहद छोटा सा होता था लेकिन ऊपर का हिस्सा शायद चोगुना. सड़क किनारे ढाबे पर हाथ से बुनी चारपाई और सादा लकड़ी के बेंच कुर्सी पर बैठकर किये जाने वाले परांठे के उस नाश्ते का स्वाद आज भी कायम है लेकिन अब चारपाई और बेंच की जगह शानदार चमकदार फर्नीचर ने ले ली है. अब वहां आसपास के खेत से आती हवा और मिट्टी के तंदूर की आंच में सिकते परांठों की खुशबू नहीं है. अब वहाँ छप्पर वाले या कच्ची पक्की छत वाले उन ढाबों की जगह ले ली है आलीशान और विशाल एयरकंडीशंड रेस्तरां ने. वैसे उनके नाम के आगे ढाबा अभी भी लिखा मिलेगा. शायद इससे कुछ नियमों के झंझट कम होते हैं और साथ ही पुराना नाम, आकर्षण और स्टाइल कायम रखने में मदद मिलती होगी.
मुरथल में ढाबों की शुरुआत :
बहरहाल, बात यहाँ के परांठे की की जाए तो ये जितना लोकप्रिय है उतना यहां पर इसका इतिहास कोई ज्यादा पुराना नहीं है. असल में मुरथल में परांठों की पहलों पहल शुरुआत करने वाले यहां 2 – 3 ढाबे ही थे. उन्हीं में से एक है गुलशन ढाबा (gulshan dhaba). अब इसके मालिक गुलशन राय और मनोज नाम के दो भाई हैं लेकिन खाने पीने के इस ठिकाने की शुरुआत हुई थी चाय की एक मामूली सी दुकान के तौर पर. भारत के दुर्भाग्यपूर्ण बंटवारे के कारण अपनी मातृभूमि मुल्तान (वर्तमान में पाकिस्तान) की मिट्टी को छोड़कर भटकते हुए इस हाईवे किनारे आ रुके टकन दास कुकरेजा और उनके बेटे किशन चंद कुकरेजा ने गुलशन ढाबे की शुरुआत की थी. ये बात 50 के दशक की है. दिल्ली से पंजाब, हिमाचल और कश्मीर की तरफ जाने वाले और वहां से आने वाले ट्रक ड्राइवरों के लिए रुकने का पसंदीदा ठिकाना बनी चाय की ये दुकान फिर दाल रोटी बेचने लगी. इसके बाद इसने छोटे मोटे ढाबे की शक्ल अख्तियार कर ली. ढाबा बना तो इसका नाम टकन दास कुकरेजा के बड़े पोते गुलशन के नाम पर रखा गया.
परांठे के साथ बड़ी वैरायटी :
स्वर्गीय टकन दास कुकरेजा के छोटे पोते मनोज बताते हैं कि उनके साथ यहाँ के पुराने ढाबों में आहूजा ढाबा और सुनील ढाबा भी हुआ करता था. बहरहाल, इनकी जगह आसपास ही इधर उधर बदलती भी रही. ये ढाबे भी आज यहाँ चल रहे हैं. यहाँ सबसे ज्यादा बदलाव की शुरुआत देखने को मिली 90 के दशक में यानि आज से तकरीबन 25 -30 बरस पहले. पहले यहाँ तवे के ही परांठे मिलते थे लेकिन तंदूरी परांठों का चलन ऐसा चला कि चलता चला गया. जैसे जैसे लोगों की आमद बढ़ती गई वैसे वैसे परांठों की किस्में ही नहीं यहाँ खाने पीने के और सामान की मांग व वैरायटी भी बढ़ने लगी. अब तो हालत ये है कि यहाँ का मेनू (menu) पढ़कर ऑर्डर देने में ही आपको 5 -10 मिनट लग जायें (अगर आपने पहले से तय नही किया हुआ है तो). मुरथल के ढाबों पर तरह तरह के परांठे की ही नहीं नार्थ इन्डियन, साउथ इन्डियन, राजस्थानी, मुगलई, चाइनीज़, इटेलियन की भी वैरायटी खूब मिलती है. देसी घी की जलेबी, रबड़ी, कुल्फी, कचोड़ी, समोसा, तरह तरह की चाट, गोल गप्पे से लेकर आइस क्रीम, केक पेस्ट्री और भी न जाने क्या क्या. ज़ाहिर सी बात है कि जब इतना सब कुछ हो तो चाय, कॉफ़ी, लस्सी, शिकंजी से लेकर मॉकटेल क्यों न हो …!
सोनीपत के मुरथल में ढाबों ने शाकाहारी के साथ साथ मांसाहारियों के लिए खुद को तैयार कर रखा है. मांसाहार की भी भरपूर वैरायटी (non veg dishes) आपको मिलेगी. जो नॉनवेज नहीं खाना चाहते लेकिन वैसा हेल्दी और प्रोटीन वाला खाना टेस्ट करना चाहते हैं उनके लिए यहाँ सोया चाप के काउंटर भी हैं. देसी पन के शौक़ीन लोगों ने जहां मुरथल को लोकप्रिय बनाया वहीं दिल्ली जैसे मेट्रो शहर में निजी गाड़ियों की सहज उपलब्धता ने छोटे छोटे ग्रुपों और परिवारों के लिए ये आउटिंग और पिकनिक जैसी जगह के तौर पर विकसित हो गया. मुरथल आना युवाओं के लिए मस्ती भरा सफर है. कॉर्पोरेट कल्चर के साथ वीकेंड की आउटिंग का क्रेज़ साधारण और मध्यवर्गीय तबके में बढ़ा है. उनको भी मुरथल जैसी जगह मुफीद लगती है जो शहर से बाहर और भीड़ भाड़ से अलग है और ज्यादा दूर भी नहीं है.
ढाबे पर दुकानें :
यही नहीं मुरथल में ढाबे वालों ने युवा वर्ग के साथ बच्चों के आकर्षण के लिए भी बंदोबस्त करने शुरू कर दिए. ढाबे के एक हिस्से में ऐसे सामान की दुकान भी खोल दी गई हैं जहां बच्चों के लिए तरह तरह के लकड़ी पत्थर के खिलौनों से लेकर आधुनिक, चमकदार, बत्तियों वाली बन्दूकों से लेकर बैटरी से चलने वाली तरह – तरह की कारों और प्लेन के खिलौने भी मौजूद हैं. देशी विदेशी ब्रांडेड के टॉफी चॉकलेट से लेकर बिस्किट और भी न जाने क्या क्या इन सब दुकानों पर मिलता है. चूरन, आम पापड़ से लेकर खट्टी-मीठी गोलियां, पान सुपारी आदि बहुत कुछ यहाँ है. यही नहीं ऐसी दुकानें भी मुरथल के ढाबों पर मिल जाएंगी जहां घर गृहस्थी सजाने के लिए स्टाइलिश बर्तन, उपकरण, डेकोरेशन के लिए फूल, कांच के गुलदस्ते और शोपीस भी मिलेंगे. साथ ही आप मोबाइल फोन और ऐसे ही इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स की एसेसरीज भी खरीद सकते हैं. जितनी देर में आप खायेंगे पियेंगे, उतनी देर में ही आपकी कार की सफाई धुलाई भी हो जाएगी. कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि छोटा मोटा बाज़ार बनते जा रहे इन ढाबों पर समय और पैसा खर्च करने के अपार अवसर हैं.
मुरथल आना युवाओं के लिए मस्ती भरा सफर है. कॉर्पोरेट कल्चर के साथ वीकेंड की आउटिंग का क्रेज़ साधारण और मध्यवर्गीय तबके में बढ़ा है. मुरथल के इन ढाबों का 24 घंटे सातों दिन खुला रहना इस किस्म के ग्राहक को हर वक्त न्योता देता है. पुराने ढाबे बड़े होते गए और साथ ही उनकी लोकप्रियता और आने वालों की ग्राहकों की बढ़ती संख्या को देख यहाँ और ढाबे भी खुलते चले गए. यूं तो दिल्ली-चंडीगढ़ मार्ग पर पर जगह जगह ढाबे मिल जायेंगे लेकिन मुरथल में ही अकेले एकाध किलोमीटर के दायरे में 50 ढाबे तो होंगे ही. ऐसे कितने ही ढाबे यहाँ मिल जाएंगे जो एक बार में 100 -200 ग्राहकों को खाना परोसने की ताकत रखते हैं. इससे ये भी अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि वहां कितने कर्मचारी काम करते होंगे. खुद मुरथल के गुलशन ढाबे के ही मनोज बताते हैं कि उनके यहाँ 150 कर्मचारी हैं.
गरम धरम भी आया :
चंड़ीगढ़ – दिल्ली मार्ग पर इन दोनों जगहों के बीच करनाल भी ऐसी एक जगह है जहां इस तरह के ढाबे बड़ी तादाद में मिल जाते हैं. लेकिन मुरथल के ढाबों की लोकप्रियता, वहां होने वाली सेल और उसकी बढ़ती सम्भावनाओं का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि भारतीय फिल्म इंडस्ट्री या यूं कहें कि बॉलीवुड के ‘ही मैन’ ( He Man of bollywood ) कहलाने वाले एक ज़माने के स्टार धर्मेन्द्र ने भी यहीं पर अपने थीम के पहले ढाबे का उद्घाटन किया. धर्मेंद्र के गुस्सैल और गर्म हीरो वाले किरदार को उभारते ‘गरम धरम ‘ नाम के इस ढाबे ने तो हद ही कर डाली. शोले फिल्म के पोस्टरों से लेकर मोटर साइकिल और रेट्रो माहौल को बनाती साज सज्जा वाले इस जगह को ढाबा नहीं ऐसा पंडाल कहना ज्यादा बेहतर होगा जो आजकल के धनाढ्य वर्ग या उनसा दिखने वाले वर्ग के लोगों की शादी ब्याह के लिए तैयार किया जाता है. वजह ये है कि यहाँ पर 1200 लोगों को एक साथ खाना खिलाने की क्षमता होने का दावा किया जाता है. इसी तरह धर्मेन्द्र का गरम धरम ढाबा तो कोविड 19 महामारी के उस दौर में भी गाज़ियाबाद में खुला जबकि खाने पीने से जुड़े रोज़गार पर संकट छाया हुआ था और होटल, ढाबों, कैफ़े जैसे कई ठिकाने बंद हो रहे थे. वैसे दिल्ली से धर्मेंद्र के पैतृक गांव साहनेवाल (लुधियाना) जाने का रास्ता भी यहीं से है.
परांठे का ऑर्डर कैसे करें :
चंड़ीगढ़ – दिल्ली राजमार्ग पर, खासतौर से मुरथल के ढाबों में परांठों को बनाने और परोसने का तरीका तकरीबन एक जैसा ही है. परांठे सबकी थाली में वैसे ही आते हैं. .. सफेद मक्खन, दही, अचार के साथ. गुलशन ढाबे पर अचार की तीन वैरायटी के साथ सिरके वाला प्याज़ भी दिया जाता है. यहाँ सबसे ज्यादा आलू प्याज़ के परांठे की मांग होती है. अगर आप अकेले हैं और यहाँ पहली बार खा रहे हैं तो एक ही परांठे का आर्डर करें क्यूंकि ये बड़े साइज़ का भरवां परांठा होता है जिसकी अभी यहाँ पर कीमत 70 रूपये है. अगर ज्यादा भूख हो तभी एक साथ दो परांठों का आर्डर करें अथवा पहले वाला परांठा थोडा खाने के बाद दूसरे का आर्डर करें. सर्विस यहाँ तेज़ होती है. आपका पहले वाला परांठा खत्म होने तक दूसरा आ जाएगा. उसके साथ और मक्खन मिलेगा. ऐसे में हाँ, एक बात का ख्याल रखियेगा, यहाँ पर दही की कीमत आपके बिल में अलग से लगेगी. आमतौर पर ये बात आर्डर लेते वक्त ढाबों के कर्मचारी की तरफ से नहीं बताई जाती. यहाँ पीने का साधारण पानी अच्छा होता है लेकिन ज्यादा मुनाफे के चक्कर में आपके टेबल पर आते ही वेटर बोतलबंद पानी देगा. मुनाफा ग्रीन सलाद में भी ख़ासा होता है इसलिए ढाबे वालों की कोशिश होती है कि ग्रीन सलाद की प्लेट भी आपके खाने में जोड़ दें. जहां तक परांठे की कीमत की बात है तो वो इसके किस्म पर निर्भर करती है. मतलब उसमें की जाने वाली स्टफिंग पर. आमतौर पर 50 -60 रुपये से लेकर ये परांठा 100 के आसपास तक की कीमत का हो जाता है.
ढाबे पर पार्टी :
इन ढाबों में पिछले कुछ साल में एक और ट्रेंड शुरू हो चुका है. छोटे गुटों में ही नही यहाँ अब बर्थ डे पार्टी या अन्य दावतें भी होने लगीं हैं. ढाबे वालों ने अपने यहाँ पार्टी हॉल भी बना डाले. और अब तो ढाबों में रहने के लिए कमरे भी उपलब्ध कराए जा रहे हैं. मुरथल जिस सोनीपत ज़िले में हैं वहाँ औद्योगिक क्षेत्र भी है. यहाँ कई बड़ी इंडस्ट्रीज भी हैं. इनमें मीटिंग्स आदि के लिए या थोड़े समय के लिए आने वाले लोगों के लिए ये कमरे मुफीद बैठते हैं. खुद एक कच्चे से कमरे से शुरू हुआ गुलशन होटल भी इस ट्रेंड में कूद पड़ा है. यहाँ बढ़िया मॉडर्न शो वाले 23 आरामदायक कमरे बनाये गए हैं. अलग अलग कैटेगरी के इन कमरों का एक दिन का किराया 2500 से लेकर 4500 रुपये तक है.
विदेश का असर :
दिल्ली – चंडीगढ़ मार्ग के ढाबे आधुनिकता की दौड़ में पूरी रेस लगाते दिखाई दे रहे है जो इनके चमचमाते वाशरूम में लगी आधुनिक फिटिंग्स और असेसरीज़ से भी दिखाई देती है. यूँ तो कुछ ने पहले से ही यहाँ कांटेक्ट लेस टोंटियां आदि लगाई थीं लेकिन कोविड 19 महामारी के हालात के बाद इनका ट्रेंड भी बढ़ा है. यहाँ काम करने वाले कर्मचारियों की यूनीफार्म भी स्टाइलिश और पश्चिम देशों के सर्वर्स से प्रभावित दिखाई देती है लेकिन उनकी बॉडी लेंगुएज (body language) और बातचीत का सलीका यहाँ की चमचमाहट और पश्चिम प्रभावित स्टाइल से मेल नहीं खाता. सर्विंग के मामले में और हाइजीन के मामले में भी ये उस नजरिये से पूरी तरह खरे नहीं उतरते. ढाबों में विदेशी तर्ज़ पर कुछ बन्दोबस्त करने के पीछे असल में एक बडा कारण है दिल्ली – चंडीगढ़ मार्ग से बड़ी तादाद में एनआरआई और विदेशी टूरिस्टों का आना. ठीक ठाक पैसे लेकर आने वाले ये ग्राहक इन ढाबों पर रुकना पसंद करते हैं और वैसे भी उनके पास कोई और विकल्प नहीं होता था. पंजाब के दूरदराज़ इलाकों से विदेश जाने के लिए उन्हें दिल्ली से फ्लाइट्स लेनी होती है. ऐसे में आमतौर पर 7 -8 घंटे की रोड ट्रेवलिंग (road travelling ) में उनको दो तीन ब्रेक तो लेने पड़ते ही हैं जिनमें से एक ब्रेक अक्सर मुरथल होता है. देर शाम या रात में आने जाने वाली इन इंटरनेशनल फ्लाइट से सफर करने वाले लोगों को दिल्ली एयरपोर्ट पर विदा करने तक साथ जाने या आने पर हवाई अड्डे पर स्वागत करके साथ के लिए परिवार और दोस्तों के होने का ट्रेंड जारी है. ऐसे छोटे छोटे ग्रुप भी दिल्ली से लेकर चंडीगढ़ मार्ग के इन ढाबों पर मिल जाते है. देश विदेश आने जाने वाले ऐसे ग्राहक भी मुरथल के ढाबों में खाने पीने के सामान की बढ़ती वैरायटी और बदलते ट्रेंड की एक बड़ी वजह हैं.
मुख्य तौर पर मीलों के सफर पर निकले ट्रक ड्राइवरों और क्लीनरों की ज़रूरत पूरा करने के लिए सड़कों के किनारे खुले ढाबे के कल्चर के एक हिस्से पर अनुभव के आधार पर लिखी ये रिपोर्ट उम्मीद है आपको पसंद आएगी और इस रूट पर यात्रा के बारे में जानकारी बढ़ाएगी. पसंद आई हो तो इसके लिंक को शेयर ज़रूर करें. आपका ये कदम www.thereporteryatra.com टीम का हौसला बढ़ाएगा.