भारत की राजधानी दिल्ली का ऐतिहासिक बाज़ार चांदनी चौक कुछ मामलों में तो बदल रहा है और यहाँ आना – जाना और घूमना थोड़ा आरामदायक हो गया है जो अच्छा लगता है. लेकिन काफी कुछ ऐसा भी जो नहीं बदला और इसका न बदलना सबसे अच्छी बात कही जा सकती है क्यूंकि ये हमें अपनी उन जड़ों से जोड़े रखती है जो हमें एक अलग तरह की ज़हनी ताकत देते हैं. ऐसी ही एक दुकान है जो तकरीबन तकरीबन 150 साल पुरानी है और यहाँ अब भी वही बिकता है जो दशकों पहले मिलता था- नींबू की खटास और चीनी की मिठास से भरपूर , हाज़मेदार मसालों से तैयार स्वाद भरा पानी . आप इसे शिकंजी भी कह सकते हैं लेकिन यहाँ पर लोग इसे लेमन ही कहते हैं. दुकान का नाम है पंडित वेद प्रकाश लेमन वाले. चांदनी चौक बाज़ार की एक ऐसी दुकान जहां शायद ऐसा कभी नहीं हुआ कि जब , सुबह खुलने से लेकर रात बंद होने तक कम से कम 2 – 3 ग्राहक न खड़े रहते हों. मज़े की बात ये कि मौसम चाहे कोई सा भी इस दुकान का पेय पदार्थ बिकता ही है.

दुकान का 150 साल का इतिहास :

पंडित वेद प्रकाश लेमन वाले के संस्थापक स्व. पंडित वेद प्रकाश

चांदनी चौक ( Chandni Chowk) में दिल्ली के टाउन हॉल (Town Hall ) के सामने तिराहे पर दाहिनी तरफ के बरामदे में घुसते ही जहां ग्राहकों का छोटा सा झुरमुट दिखाई दे , समझ लीजिये यही है पंडित वेद प्रकाश लेमन वाले की दुकान जिसे 1870 से एक ही कुनबा चला रहा है जो पास की ही गली भैरों वाली में रहा करता था. एक ज़माने में पत्ते के दोने और मिटटी के कुल्हड़ जैसे बर्तनों में यहाँ शरबत और उस तरह के पेय पदार्थ बनाये और बेचे जाते थे. अब यहाँ मोटे कांच की ख़ास तरह की उन हरे या सफेद रंग वाली बोतलों में सोडे वाला मीठा लेमन पानी बेचा जाता है जिन बोतलों के गर्दननुमा ऊपरी हिस्से में एक ‘ कंचा ‘ फंसा रहता है जो पंजाबी भाषा के नाम ‘बंटा या बनटा ‘ के नाम से ज़्यादा जाना जाता है. इसलिए दिल्ली वाले इसे बनटे वाली बोतल ही कहते हैं. बोतल में जब मीठे पानी के फार्मूले को सोडे के साथ मिलाकर भरा जाता है तो ये बंटा बोतल के मुंह पर आकर ऐसे फंस जाता है कि बोतल सील बंद हो जाती है. जितना मर्ज़ी हिला डुला या उलट पलट लो , मज़ाल है एक बूँद भी टपके लेकिन जरा सी ताकत से कंचे यानि बंटे को हाथ की ऊँगली से दबाइए .. खट से कंचा ..टन की मधुर आवाज़ के साथ गिरकर बोतल के गले में गिरेगा और वहीँ अटक जाएगा. वहीं दबाव के साथ सोडे की गैस बाहर निकलेगी और पेय गटकने के लिए तैयार है. ये सादा चीनी का स्वाद वाला नींबू पानी है.

बनटे वाली बोतल

लेमन शिकंजी मसाला :


चांदनी चौक में शिकंजी की इस दुकान में अब अगर इससे अलग हटकर पेय पदार्थ का स्वाद और मजा लेना है तो वो भी हाज़िर है. बंटे वाली बोतल के पानी को ग्लास में नींबू के रस और 14 किस्म के मसाले पीसकर बनाये गये पाउडर में मिलाकर आपको स्ट्रा के साथ सर्व किया जाएगा. पहले कांच के ग्लास होते थे. अब सफाई और व्यवहारिक दृष्टि से बेहतर समझे जाने वाले प्लास्टिक के ग्लास ने उनकी जगह ले ली है. ऐसा हो नहीं सकता कि अगर आप दूर से आये हैं तो एक और ड्रिंक पीने से खुद को रोक सकें. स्वाद के मुकाबले कीमत कुछ ख़ास नहीं है. बाज़ार में मिलने वाले पैक्ड कोल्डड्रिंक्स के आसपास ही होगी लेकिन एकदम ताज़ा. और सबसे अच्छी बात कि बोतल से पानी निकालने से लेकर आपको सर्व किये जाने तक की सारी प्रक्रिया आपकी आँखों के सामने होती है. मसालों के फार्मूले के बारे में पूछे जाने पर दुकान के मालिक पांच भाइयों में से सबसे छोटे चेतन शर्मा ज्यादा कुछ नहीं बताते ( स्वाभाविक है व्यवसायिक सीक्रेट ) लेकिन इतना ज़रूर कहते हैं इसमें विभिन्न तरह के 14 मसाले हैं. ये मसाले बाज़ार से साबुत लाकर , सुखाकर इमाम दस्ते में हाथ से पीसे जाते है.

हाँ , एक ख़ास बात और भी है. अगर आप यहाँ से जाने के बाद भी पंडित वेद प्रकाश लेमन वाले ( pt. ved prakash lemon wale ) की शिकंजी का स्वाद लेना चाहते हैं या फिर दूर रह रहे अपनों को भी इसके स्वाद को चखाना चाहते हैं तो उसका भी अब इंतजाम है. आप यहाँ से डिब्बाबंद वही मसाला खरीदकर ले जा सकते हैं जो आपने यहाँ पीया हो. अब ये आप पर निर्भर करता है कि उस मसाले से शिकंजी कैसे बनाये. लेकिन ट्राई ज़रूर करना चाहिए. हो सकता है आप इससे बेहतर ही शिकंजी बना लें.

पंडित वेद प्रकाश से पहले 7 -8 पीढ़ियाँ यहाँ पर पेयपदार्थ बेचती रही हैं. जिस ज़माने में फ्रीज़र नहीं होते थे तब भी यहाँ बर्फ से बने ठंडे शरबत बेचे जाते थे. तब मटके में भरकर ज़मीन में दबाकर शरबत ठंडा किया जाता था. समय के साथ साथ इस दुकान के मालिकों को अपने काम करने का स्टाइल बदलना पड़ा लेकिन मूल काम इन्होंने नहीं बदला. अब बोतल में मीठा पानी फैक्टरी में भरा जाता है जोकि दिल्ली के यमुना पार क्षेत्र के शाहदरा में है. वहां से बोतलों के क्रेट किसी गाड़ी से रोज़ाना की ज़रुरत के हिसाब से लाये जाते हैं. इस फैक्टरी को चेतन के एक अन्य भाई शंकर संभालते हैं.

मिठास भी , मिलनसार भी :

चेतन शर्मा और उनका स्टाफ

46 बरस के चेतन बताते हैं कि उनके पिता पंडित वेद प्रकाश के देहांत के बाद दुकान का कारोबार मुख्य तौर पर बड़े चाँद बिहारी देखते है जिन्हें लोग भी और यहाँ आने वाले ग्राहक भी भाई चीनी के नाम से पहचानते हैं. वेद प्रकाश 58 बरस के थे जब 18 नवम्बर 1993 को उनका देहांत हुआ. उन्होंने अपने पूर्वजों की तरह ही इस दुकान में मीठा पानी बेचकर बिता दी थी. वेद प्रकाश को लोग लेमन वाले के नाम से पहचानते थे तो उनके बड़े बेटे चाँद बिहारी को लोगों ने चीनी भाई नाम दे डाला . शायद मिठास के कारोबार की वजह से ही उनका नाम चीनी भाई पड़ा. स्वाद के साथ साथ इन भाइयों का स्वभाव भी मिठास भरा है. दो भाई और है सुनील और संजय. रिपोर्टर यात्रा की टीम जब दुकान पर बैठे चेतन की तस्वीरें ले रही थी तो चेतन ने आग्रह किया कि टीम उनके साथ भी फोटो खिंचवाए और उसे प्रकाशित भी करे. मिलनसार और संतुष्ट प्रवृत्ति के चेतन बेहद ही विनम्र भाव से बात करते हैं. छत और फर्श के बीच में एक और छत ढालकर दो हिस्सों (दो मंजिला ) में बनी इस दुकान का हरे रंग के पेंट वाला हुलिया तकरीबन वैसा ही है जैसा बरसों पहले था.

ऐसे पहुंचे चांदनी चौक :
लाल किला और फतेहपुरी मस्जिद के बीच में मुख्य चांदनी चौक बाज़ार में बंटे वाली बोतल की इस मशहूर दुकान तक पहुंचना आसान भी है. दिल्ली मेट्रो (delhi metro ) ने यहां पहुंचना आसान कर दिया है. आप चाहें तो चांदनी चौक मेट्रो स्टेशन ( chandni chowk metro station ) या चावड़ी बाज़ार मेट्रो स्टेशन पर उतरकर टहलते हुए पहुँच सकते है. चांदनी चौक के सौंदर्यीकरण के साथ ही अब चांदनी चौक में वाहनों के चलने पर रोक लग गई है ताकि अत्यधिक भीड़भाड़ को कम करके इसे आवागमन के लिए आरामदायक बनाया जा सके. लेकिन नई व्यवस्था के तहत यहाँ रिक्शा का आना जाना ज़रूर होता है. चांदनी चौक में मोटर वाहन चलाने पर रोक है. अगर आप ज्यादा नहीं चल सकते तो चांदनी चौक आने के लिए मेट्रो स्टेशन से रिक्शा मिल जाता है जो 5 -10 मिनट में आपको चांदनी चौक के मेन बाज़ार तक पहुंचा देगा. राजीव चौक यानि कनाट प्लेस से मेट्रो पर आना यहाँ बहुत सुखद है तो वहीँ कश्मीरी गेट ( आईएसबीटी) ( kashmere gate metro ) से तो अगला ही स्टेशन है.

चांदनी चौक

यहाँ रहना होगा सावधान :
पुरानी दिल्ली के भीड़ भाड़ वाले तमाम बाजारों में से एक चांदनी चौक में बाहर से आने वालों को खासतौर पर सावधानी बरतनी चाहिए. यहाँ ज़रा भी लापरवाह हुए तो आपका कीमती सामान खासतौर से पर्स और मोबाइल फोन गायब होने के पूरे पूरे चांस हैं. इस बारे में खुद यहाँ के दुकानदार भी आपको आगाह करते मिल जाएंगे. चांदनी चौक के आसपास के मेट्रो स्टेशन से लेकर बाज़ार तक पहुंचने और लौटने तक आपको सावधान रहना होगा. एक और गड़बड़ है तो वो है गौरीशंकर मन्दिर और आसपास के तमाम पूजास्थलों के आसपास गंदगी और भिखारियों का जमघट. गुरुद्वारा सीसगंज साहब को छोड़कर चांदनी चौक के आसपास लगभग सभी पूजास्थलों पर यही समस्या मिलेगी. पूरे चांदनी चौक में रिक्शा की व्यवस्था थोड़ी और सुधारे जाने की ज़रुरत है.

चांदनी चौक

चांदनी चौक का नया चेहरा :
इन सबके बावजूद अब चांदनी चौक आना एक सुखद अनुभव है. अच्छी बात ये है कि चांदनी चौक के नया होने के बाद भी इसे दिल्ली के पुराने स्वरूप के हिस्से की तरह ही बनाकर रखा गया है. जगह जगह लाल पत्थर से बनाये स्टूल (stool chair ) और बेंच ( bench ) थके हुए सैलानियों या शॉपिंग से परेशान हुए लोगों को सुस्ताने , पर्यटकों को तस्वीरें खिंचवाने और ऐतिहासिक बाज़ार को निहारने का मौका देते हैं. फोटोग्राफी के शौक़ीन और सेल्फी लेने के लिए भी यहाँ लोगों के लिए ख़ास मौके है जहां अब दूर से भी आपकी फ्रेम में , भारत की आज़ादी का प्रतीक , ऐतिहासिक लाल किला दिखाई देता है.