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कश्मीर में पानी मंदिर भी कहा जाता है इस शिव मन्दिर को

पानी मन्दिर

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श्रीनगर हवाई अड्डे से तकरीबन 18 किलोमीटर दूर इस शिवालय (Shiv Mandir) को पानी मन्दिर (Pani Mandir) भी कहा जाता है. सिर्फ 17 फुट 6 इंच की परिधि वाले चौकोर से एक कमरेनुमा ये शिव मन्दिर पानी के कुदरती चश्मे के बीचों बीच पत्थरों की खूबसूरत शिल्पकला का नमूना है. बादामी बाग़ छावनी क्षेत्र में एकदम शांत वातावरण में यूँ यहाँ हमेशा ही आकर्षण रहता है लेकिन सुबह सुबह पक्षियों की चहचहाट के बीच मन्दिर के मुख्य द्वार पर जब कोई श्रद्धालु घंटी बजाकर प्रवेश करता है तो पक्षियों की आवाजों के बीच उसकी ध्वनि घुलकर मनोरम संगीत लहरी पैदा करती है. मन को पवित्र कर देने वाले प्राकृतिक वातावरण में स्थापित स्लेटी पत्थरों को तराश कर बनाये गये इस शिव मन्दिर की अहमियत जितनी धार्मिक लिहाज़ से है उससे कहीं ज़्यादा कश्मीर के इतिहास को जानने के नज़रिये के हिसाब से भी है.

पानी मन्दिर

मन्दिर के बाहर लगी पाषाणशिला पर लिखे इसके इतिहास के मुताबिक़ पण्डरथान मन्दिर 10 वीं ईसवी में बनाया गया था. इतना ही नहीं दिलचस्प बात तो ये है कि कश्मीर घाटी में उस शिल्पविद्या की शुरुआत ही यहाँ से हुई और फिर घाटी के बाकी हिस्सों में विकसित हुई. चारों तरफ पानी और बीच में छोटे से आकार का एक कक्ष वाला ये मन्दिर बरबस ही ध्यान खींच लेता है. ऐसा हो नहीं सकता कि आपकी निगाह यहाँ पड़े और आप खुद को भीतर जाने से रोक पायें. मन्दिर की बुनियाद हाथियों की कतार से घिरी हुई है जो एक तरह से इसे ताकत देता है. पत्थर से बनी इसकी छत सूच्याकार (भालानुमा) की है जिसके बीच में अलंकृत (झालरनुमा) एक पट्टी है जो छत को दो हिस्सों में बांटती दिखाई देती है. मन्दिर के चारों तरफ दीवारों में त्रिभुजी आकार के द्वार (खिड़की नुमा) इसकी रक्षक आकृति को खत्म करते हैं. मन्दिर के मुख्यद्वार के ऊपर शिव की आकृति है जो पशुपति वर्ग की उत्पति दर्शाती है. मन्दिर में स्थापित मूर्ति सिद्ध करती है कि ये मन्दिर महादेव को समर्पित है.

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इस शिव मन्दिर का कमरा अन्दर से बेहद साधारण है. सिर्फ थोड़ी बहुत आकर्षक कलाकारी की गई है लेकिन इसमें 9 पत्थर एक दूसरे के ऊपर इस तरह से लगाये गये है कि जगह को कम करने के लिए हरेक नीचे के वर्ग के कोण को काट रहा है. इससे वे सुन्दर आकृति पैदा करते हैं जैसे ऊंडयनयक्ष गन्धर्व या फ़रिश्ते हाथ में माला लेकर थाली लिए या कमल के फूल लिए मौजूद हों. सबसे ऊपर शिखर पर वर्गाकृत पत्थर पर माला के मोतियों से घिरा 12 पंखुड़ियों वाला कमल कलाकृति का ख़ास नमूना है. मन्दिर के बाहर की शिला के मुताबिक़ ये प्यार का मंदिर भी है. फोटोग्राफी (photography) के हिसाब से उत्तम ये छोटा सा स्थान सेल्फी प्रेमियों के लिए भी एक सुन्दर फ्रेम मुहैया कराता है.

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मन्दिर के विवरण के साथ शिला में श्रीनगर के इतिहास का ज़िक्र करते हुए बताया गया है कि आधुनिक गाँव पंडरथान का मूल संस्कृत शब्द पुरानाधिष्ठान है. यहाँ महाराजा अशोक (Asoka the great) ने श्रीनगर शहर का शिलान्यास किया था और 6 वीं शताब्दी के अंत में ये प्राचीन कश्मीर की राजधानी रहा. बाद में इसको परावश से नापुर क्षेत्र में शिफ्ट किया गया. यही आज श्रीनगर के नाम से जाना जाता है.

अशोक का पूरा नाम देवानांप्रिय अशोक मौर्य था. वर्तमान भारत के अलावा पाकिस्तान, नेपाल, बांग्लादेश, भूटान, म्यांमार और दूसरी तरफ दक्षिण में मैसूर तक और पश्चिम में अफ़गानिस्तान, बलूचिस्तान और ईरान तक सम्राट अशोक का शासन पहुँच गया था. चक्रवर्ती सम्राट अशोक दुनिया भर के पहली पंक्ति में गिने जाने वाले सभी महान और ताकतवर राजाओं में से थे. कलिंग युद्ध ने सम्राट अशोक का दिल बदल डाला. इंसानियत, दया और करुणा के भाव उनमें इस कदर रच-बस गये कि उन्होंने कभी युद्ध न करने की प्रतिज्ञा ली. अशोक महान ने बौद्ध धर्म अपना लिया. उस दौर में अशोक ने कश्मीर में भी बौद्ध मत का काफी प्रचार किया.

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