श्रीनगर से पहले जम्मू कश्मीर की प्राचीन राजधानी रहे अवंतिपुर का विष्णु मन्दिर बेशक खंडहर में तब्दील हो चुका है लेकिन ये खूबसूरत कश्मीर के इतिहास को अपनी नज़रों से देखने और महसूस करने की एक अच्छी और पैनी समझ पैदा कर सकता है. जो लोग भी कश्मीर घूमने जाना चाहते हैं या उसके बदले हालात के बारे में जानने और समझने के जिज्ञासु हैं उनको अवंतिपुर के सदियों पुराने इस  मंदिर के अवशेष भी बहुत मदद कर सकते हैं. अवंतिपुर  विष्णु मन्दिर के अवशेष  भारत की आज़ादी से पहले एक विदेशी पुरातत्व विशेषज्ञ ने खुदाई करवाकर निकलवाए थे. झेलम नदी के दक्षिण दिशा में तट पर बसे अवंतिपुर का  ये मन्दिर शायद किसी ज़माने में भूकंप या बाढ़ जैसी  आपदा की चपेट में आकर ज़मीन में  दब गया होगा. वैसे भगवान  विष्णु के इस मंदिर को अवन्ति स्वामी मंदिर भी कहा  जाता है.

अवन्तिवर्मन का विष्णु मन्दिर

कश्मीर घाटी के इस मन्दिर के बारे में विस्तार से जानने से पहले इस स्थान के बारे में जानना ज़रूरी  हैं जिसे कई नाम से पुकारा जाता है – अवंतीपुर , अवन्तिपुर , अवंतीपोरा और कश्मीरी में वून्तपोर  (Woontpor) भी कहा जाता है. आमतौर पर ठंडी रहने वाली  कश्मीर घाटी  का  ये इलाका समुद्र तल से 1582 मीटर की ऊंचाई पर है. ये एक छोटा सा गाँव या कस्बा कहा जा सकता है हालांकि सरकारी राजस्व रिकार्ड में अवंतीपोरा एक तहसील भी है . राष्ट्रीय राजमार्ग 44 पर स्थित अवंतिपुरा की आबादी ( 2011 की भारत की जनगणना के मुताबिक़) 6 हज़ार के आसपास है.

राजा अवन्तिवर्मन ने बनवाया : 
उत्पल वंश के राजा अवन्तिवर्मन 855 ईस्वी में कश्मीर के राज सिंहासन पर जब बैठे तब लम्बे समय से चले आ रहे अंदरूनी युद्धों के कारण राज्य की अर्थव्यवस्था खस्ताहाल थी. उस दौरान  राजा अवन्तिवर्मन ने  झेलम नदी के किनारे अवन्तिपुर को बसाकर इसे कश्मीर की राजधानी बनाया. अवंतिपुर को कश्मीर की राजधानी बनाने और यहाँ के निर्माण कार्य की मुख्य ज़िम्मेदारी उन्होंने अपने प्रधानमंत्री सूर्या को सौंपी  जोकि एक इंजीनियर और आर्किटेक्ट थे. कहते हैं कि सूर्या ने झेलम नदी से गाद निकलवाकर उसका रास्ता तक बदला था. अवन्तिवर्मन  खुद तो कलाप्रेमी थे ही , कलाकारों और शोधकर्ताओं को भी बेहद सम्मान देते थे.

अवन्तिवर्मन के विष्णु मन्दिर का डिटेल

राजा अवन्तिवर्मन ने कश्मीर में कई मंदिरों और बौद्ध मठों का निर्माण कराया. अवन्तिपुर को मुख्यत: दो मंदिरों की वजह से पहचाना जाता था. एक तो, सृष्टि के पालनहार माने जाने वाले  भगवान विष्णु को समर्पित अवन्ति स्वामी मन्दिर और दूसरा विनाश से सम्बद्ध माने जाने वाले भगवान शिव को समर्पित शिवेश्वर मन्दिर. भगवान  शिव का ये मन्दिर अवन्ति स्वामी मन्दिर से एक किलोमीटर के फासले पर ही है लेकिन ये दोनों मन्दिर अलग अलग समय में बनाये गये थे. वैसे  अवन्तिस्वामी मन्दिर को अवन्तिश्वर मन्दिर भी कहा जाता है. अवन्तिश्वर और शिवेश्वर , दोनों ही मंदिरों की  वास्तुशैली यूनानी वास्तु जैसी दिखाई देती  है.

आठवीं शताब्दी का  होने के बावजूद अवन्तिपुर मंदिर के खंडहर अब भी आकर्षक लगते हैं. हाइवे से धीमी रफ़्तार से गुजरने पर ही ये मंदिर दिखाई दे जाता है. मन्दिर की पृष्ठभूमि में पर्वत श्रृंखला इसे और आकर्षक स्थान बनाती है जो खूबसूरत फोटो लेने के लिए यहाँ आने वाले पर्यटकों की पहली पसंद होती है. हालांकि आबादी से फासले पर एकांत वाला इलाका होने और ज़्यादा भीड़ भाड़ न होने के  कारण यहाँ नौजवान जोड़े भी आना पसंद करते हैं. सेल्फी के शौक़ीन नौजवान नस्ल को भी यहाँ अपने पसंद के अलग अलग फ्रेम मिलते हैं.

अवन्तिवर्मन का विष्णु मन्दिर

खुदाई में मिला मन्दिर :
ब्रिटिश शासन के दौरान भारतीय पुरातत्व विभाग के  प्रमुख रहे जॉन मार्शल और उनके बाद पुरातत्त्व विभाग (Archeological Survey of India ) के पहले भारतीय महानिदेशक बने दया राम साहनी (Daya Ram Sahni )  की देखरेख में कश्मीर में हुई खुदाई के दौरान के इन मंदिरों के खंडहर मिले. अवंतिस्वामी मंदिर के  खंडहरों से पता चलता है कि ये मन्दिर एक विशाल बरामदे की तरह से बनाया गया था. इन बरामदों में तीन तरफ कमरे बने हुए थे. अवंतिपुर मंदिर पंचायतन मंदिर है जो स्तम्भावली पर आधारित आयताकार प्रांगण के बीचों बीच है. गर्भ गृह , चार छोटे देवायतन , खम्भों वाला मंडप और मुख्य प्रवेश द्वार इसके प्रमुख हिस्से हैं. आंगन में बीचोंबीच ऊँचे स्थान पर यहाँ शायद गरुड़ ध्वज स्थापित रहा होगा. अवंतिपुर का विष्णु मंदिर  ( 855 – 83 ईस्वी ) के दौर के वास्तुशिल्प और स्थापत्य कला के मिश्रण  का सुन्दर नमूना है. समान अनुपात के निर्माण , पत्थर को काटकर उस पर बारीकी से उकेरी कृतियाँ और अवस्थित मूर्तियां मनोहारी हैं.

अवन्तिवर्मन का विष्णु मन्दिर

मुख्य मन्दिर दो स्तर वाले चबूतरे पर बना हुआ है जिन तक आंगन में बनी सीढ़ियों के जरिये पहुंचा जा सकता है. मुख्य द्वार के दोनों तरफ दीवारों पर उभरी हुई आकृतियाँ हैं.  गर्भगृह के सोपान मार्ग के लघु भित्तियों पर कामदेव , राजा अवन्तिवर्मन , उनकी रानी और सभासदों की आकृतियां बनी हुई हैं. यहाँ लगभग सभी लघु कक्षों के द्वारमुख त्रिवलकार हैं.

मन्दिर को क्षति :
भक्ति और कला की सुंदर कृति अवंतिस्वामी मन्दिर के इतिहास के बारे के बात और कही जाती है जो बताती है  कि प्रकृति की उस आपदा से पहले  इस मन्दिर को इंसानी नफरत का दंश झेलना पड़ा. वो तब की बात है जब सिकंदर की सेनाएं यहाँ पहुंचीं थी . उस दौरान  दीवारों पर उकेरी गई देवी देवताओं के चेहरों और अंगों को तोड़कर विकृत करने या उनकी पहचान नष्ट करने की कोशिश की गई. वैसे पुरातात्विक महत्व होने की वजह से अब इसकी देखरेख , सुरक्षा और मरम्मत आदि की ज़िम्मेदारी पुरातत्व विभाग के पास है.

अवन्तिवर्मन का विष्णु मन्दिर

ऐसे पहुंचे मंदिर : 
अवंती स्वामी मंदिर क्योंकि राजमार्ग पर ही है और घनी आबादी से काफी दूर है , इसलिए यहाँ पहुंचने में कोई झंझट नहीं है. संरक्षित स्थान होने के कारण यहाँ नित्य पूजा पाठ आदि जैसी गतिविधियां नहीं होती. अवंतीपोरा के इस विष्णु मंदिर में प्रवेश के लिए पुरातत्व विभाग ने फीस रखी हुई है. प्रत्येक आगन्तुक को मंदिर में जाने के लिए एंट्री टिकट (entry ticket ) लेनी होती है जो कि 25 रूपये प्रति व्यक्ति प्रति एंट्री है. यदि आप निजी वाहन से जा रहे हैं तो वाहन मंदिर के बाहर ही पार्क किया जा सकता है. यहाँ कोई पेड पार्किंग (paid parking ) जैसी व्यवस्था नहीं है.