छठी पातशाही यानि सिखों के 6ठे गुरु श्री हरगोविंद साहब जिस चिनार के पेड़ के नीचे बैठकर लोगों के साथ विचार चर्चा करते थे, आज वो वृक्ष श्रद्धालुओं के मन की मुराद पूरी करने वाला पवित्र वृक्ष बन गया है. लोग चिनार के इस तकरीबन 500 साल पुराने पेड़ पर रंगीन धागा या कपडे की कतरन बांधते हुए अपनी मनोकामना स्मरण करते हैं. जब वो इच्छा पूरी हो जाती है तो लौटकर आते हैं और उस धागे को खोल ले जाते हैं. यूं तो पूरे कश्मीर में चिनार के पेड़ हैं और कई गुणों वाले इस पेड़ का कश्मीरी संस्कृति में बेहद अहम स्थान है लेकिन यहां जिस पेड़ का ज़िक्र हो रहा है, बेहद ख़ास स्थान पर होने के कारण उसका महत्व और बढ़ जाता है. चिनार का ये वृक्ष कश्मीर के पुलवामा ज़िले में शादीमर्ग गांव में बने गुरूद्वारे में है.

Gurdwara-Shadimarg

गुरुद्वारा शादीमर्ग

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गुरुद्वारा शादीमर्ग

भारत के केंद्र शासित क्षेत्र जम्मू कश्मीर (jammu kashmir) की राजधानी श्रीनगर से तकरीबन 40 किलोमीटर के फासले पर स्थित ये ऐतिहासिक गुरद्वारा है. श्रीनगर के हरि परबत (हरी पर्वत) से बारामुला जाते वक्त गुरू हरगोविंद इसी स्थान पर रुके थे. बादशाह जहांगीर से उनकी दोस्ती थी. दोनों शादीमर्ग के पिछवाड़े जंगल में शिकार के लिए साथ साथ जाया करते थे. यहां के इतिहास की लोकप्रिय कथा के मुताबिक़ एक दिन शिकार के दौरान बादशाह को प्यास लगी लेकिन वहां पानी का कोई स्त्रोत नहीं था. तब गुरु हरगोविंद (guru hargobind sahib) ने शिकार में इस्तेमाल किया जाने वाला बरछा दूर फेंका. जिस स्थान पर बरछा गिरा वहां से जलधारा निकल आई. इस पानी से उन्होंने प्यास बुझाई. ऐसा माना जाता है कि शादीमर्ग गुरद्वारे से कुछ ही फासले पर जंगल में जो कुआं है, ये वही जल स्त्रोत है जहां गुरु का बरछा गिरा था.

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वो स्थान जहाँ गुरु जी ने बरछे से पानी निकाला था.

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वो स्थान जहाँ गुरु जी ने बरछे से पानी निकाला था.

शादीमर्ग गुरुद्वारे (gurdwara shadimarg ) के निर्माण की पृष्ठभूमि एक और कथा से जुड़ी है. इस ऐतिहासिक घटना का विवरण गुरुद्वारे की दीवार पर लिखा मिलता है. बात 1616 की है. श्री गुरु हरगोबिन्द गोइंदवाल, वजीरबाद और हमीरपुर की यात्रा के दौरान यहां रुके थे. गुरु चिनार के पेड़ के नीचे बैठे थे. श्रद्धालु उनसे आशीष लेने के लिए यहां आते थे. उन्हीं में से कुछ गुरु हरगोबिन्द के लिए मधुमक्खियों का शहद लेकर आ रहे थे, रास्ते में लोगों को स्थानीय संत भाई कुटु शाह ( bhai kutu shah) ने रोका और उनसे कुछ शहद मांगा लेकिन श्रद्धालुओं ने उनको शहद देने से इनकार कर दिया. जब श्रद्धालुओं ने गुरु हरगोबिन्द को शहद से भरा बर्तन भेंट किया तो उसमें ढेर सारी चीटियाँ थीं. तभी गुरु हरगोबिंद ने शहद लाए श्रद्धालुओं से सवाल पूछा – क्या रास्ते में किसी ने उनसे शहद मांगा था? इस पर श्रद्धालुओं ने उनको सारा किस्सा बताया. तब गुरु ने उनसे कहा कि पहले कुटु शाह को शहद देकर आएं तभी वो उनसे बाकी शहद स्वीकार करेंगे. गुरुद्वारे के बारे में दर्ज इसी इतिहास में सिखों के छठे गुरु हर गोबिंद और मुग़ल बादशाह जहांगीर की दोस्ती का वर्णन है.

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शादीमर्ग साहिब

शानदार लंगर प्रसाद :

गुरुद्वारे के आसपास शादीमर्ग में सिख समुदाय के तकरीबन 15 परिवार रहते हैं. ये कहते हैं कि वहां इनके पड़दादा या उससे पहले के पूर्वजों की भी पैदाइश हुई है. संभवत: उसी जमाने से जब गुरु हरगोबिन्द यहां आए अथवा जब से सिख परम्परा शुरू हुई. हर रविवार को यहां आसपास और पड़ोसी जिलों अनंतनाग और श्रीनगर से लोग आते हैं. इस दौरान वहां गुरु का लंगर प्रसाद मिलता है जो पूरी तरह शुद्ध शाकाहारी कश्मीरी स्टाइल में खुद श्रद्धालु तैयार करते हैं. चावल, दाल सब्जी के लंगर के साथ यहां ‘नून चा’ ( कश्मीरी नमकीन चाय) का भी लंगर प्रसाद के तौर पर वितरित किया जाता है. अगर आप कश्मीर यात्रा के दौरान धार्मिक स्थानों पर भी जाना चाहते हैं तो प्रकृति की गोद में समाया ये स्थान आपको सच में भायेगा.

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लंगर प्रसाद

गुरूद्वारे में ठहरने का इंतज़ाम :

पुलवामा ज़िले की गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी गुरुद्वारा शादीमर्ग साहिब की देखभाल का काम करती है. कमेटी के प्रधान सरदार कुलवंत सिंह बताते हैं कि यहां पर कुछ साल पहले दिल्ली के कार सेवा वाले बाबा हरबंस सिंह के प्रयास से नए भवनों का निर्माण हुआ था. उनके बाद इस काम को उन्हीं के शिष्य बाबा बीरा ने किया. कुलवंत सिंह कहते हैं कि दूर दराज़ से आने वाले श्रद्धालुओं के लिए यहाँ रुकने के लिए सराय की व्यवस्था है. सराय में तकरीबन दो दर्ज़न कमरे हैं. यहां लंगर पानी की भी उचित व्यवस्था है. आतंकवाद के दौर की शुरुआत के बाद गुरुद्वारे के भीतर जम्मू कश्मीर पुलिस और अर्ध सैन्य बल के जवान सुरक्षा व्यवस्था में तैनात रहते हैं. उनके रहने के लिए वहां अलग से एक भवन में इंतजाम किया गया है.

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गुरुद्वारा शादीमर्ग

कैसे पहुंचे गुरद्वारा शादीमर्ग :

सिख समुदाय की श्रद्धा का केंद्र गुरुद्वारा शादीमर्ग श्रीनगर से तकरीबन 35 किलोमीटर के फासले पर है. ये पुलवामा जिला मुख्यालय से तकरीबन 10 किलोमीटर के फासले मुख्य सड़क पर मेन रोड पर है. यदि बस से आते हैं तो पुलवामा के मेन बस स्टैंड पर उतरकर कर वहां से ऑटो या टैक्सी लेनी होगी. ये साफ़ सुथरा और अच्छा रास्ता है. अगस्त से नवंबर तक यहां आने पर मौसम शानदार मिलेगा. सडक के दोनों तरफ सेब के वृक्ष हैं जो सितंबर में लाल सेब से लदे मिलेंगे.